पहाड़ी जलवायु का खेल प्रशिक्षण में लें लाभ

(डा मुनीश सिंह राणा (ई-मेल के मार्फत))

हिमाचल देवभूमि है। इसकी प्राकृतिक सुंदरता व शांतिप्रिय वातावरण ने इसे कई ऋषि-मुनियों की तप स्थली बनाया है। भौगोलिक दुरूहता के कारण खेलों के मैदान बनाने में भले ही प्रकृति अड़चन पैदा करती रही हो, इसके विपरीत इसकी यह विलक्षण खूबी भारत के बाकी प्रांतों से इसे अलग करती है। यह भौगोलिक स्थिति व समुद्र तल से ऊंचाई इसको खेलों के लिए विशिष्ट बना देती है। हिमाचल समुद्र तल से 350 से 7000 मीटर तक की ऊंचाई पर फैला राज्य है। यह एक वैज्ञानिक प्रमाण है कि जैसे हम ऊंचाई पर जाते हैं, तो आक्सीजन की कमी होती है। इस तरह इस ऊंचाई पर रहने वाले लोग की कार्डियोवेस्कुलर एंडोरेंस, जिसको स्टैमिना कहते हैं, प्राकृतिक रूप से बढ़ जाता है। इसको देखते हुए भारतीय खेल प्राधिकरण ने शिलारू, शिमला में ऊंचाई पर खेल प्रशिक्षण के लिए मैदान बनाया है। इस तरह जो खिलाड़ी ऊंचाई पर प्रशिक्षण प्राप्त करेगा, उसके हृदय, फेफड़े व रक्त वाहनियां लंबी दौड़ के अनुकूल हो जाती हैं। इसलिए हिमाचल लंबी दौड़ की प्रतियोगिता की तैयारी के लिए अति उपयुक्त स्थान है। समय-समय पर हिमाचली धावकों ने राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिमाचल का नाम रोशन किया है। इसमें अर्जुन अवार्डी सुमन रावत, कमलेश, अमन सैनी तथा कई अन्य धावक हैं। वर्तमान समय में चंबा जिला की सीमा ने 3000 मीटर में राष्ट्रीय स्पर्धा में रिकार्ड बनाया है। हिमाचल के इस प्राकृतिक विशेषता को अन्य खेलों के प्रशिक्षण में भी प्रयोग करके बढि़या परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं। शिलारू जैसे मैदानों में हिमाचल के विद्यालयों-महाविद्यालयों तथा खेल संघों के लिए भी प्रशिक्षण की सुविधा प्रदान करनी चाहिए।