( डा. सत्येंद्र शर्मा, चिंबलहार, पालमपुर )
देवभूमि यह अब नहीं, बीत चुकी है बात,
दुष्कर्मों और कत्ल से, पटे हुए दिन-रात।
मारपीट-झगड़े बढ़े, सुबह, दोपहर, शाम,
क्यों अशांति इतनी बढ़ी, टकराते हैं जाम।
दिव्य भूमि में हो गया, कुछ दैत्यों का वास,
संस्कृति, आस्था ताक पर, परंपरा का हृस।
युवा व्यसन में डूबते, पीछे नहीं किशोर,
बाइक उड़ती, उड़ गई, मचा चौक पर शोर।
मंदिर की उस भीड़ में, जेबें हो गईं साफ,
मारपीट श्रद्धालु से, शांत भूमि का जाप।
दुष्ट प्रवृत्ति को त्याग दें, बढ़ें धर्म की ओर,
उन्मुख हों सद्मार्ग को, देवभूमि की ओर।
ईश्वर से करबद्ध, हम करते हैं अनुरोध,
प्रेम, सत्य की राह पर चलें, मिटें सब अवरोध।