बात बराबरी की

(प्रेम चंद माहिल, हमीरपुर)

स्त्री और पुरुष समाज रूपी रथ के पहियों के समान हैं, जिसमें एक भी पहिया थम जाए, तो रथ आगे नहीं बढ़ सकता। ठीक उसी प्रकार यदि समाज में स्त्री समाज की उपेक्षा होगी, तो संपूर्ण समाज के विकास की प्रक्रिया बाधित होगी। इससे समाज में महिलाओं की बेहतरी के मायने सहज ही समझ में आते हैं। भारतीय समाज ने महिलाओं के महत्त्व को शुरुआती दौर से ही बखूबी जाना है। लिहाजा समाज में इसे देवी या मां के स्वरूप में पूजा जाता रहा है। बीच में विदेशी आक्रांताओं का एक दौर ऐसा भी आया, जब सती प्रथा व महिलाओं के साथ अन्य किस्म की ज्यादतियां होनी शुरू हुईं। परिणामस्वरूप समाज में महिलाओं को कई शारीरिक व मानसिक यातनाएं भी सहनी पड़ीं, लेकिन आज की हम बात करें, तो भारत आजाद है। इसका अपना एक संविधान है, जिसमें महिलाओं व पुरुषों को समान अधिकार मिले हैं। बावजूद इसके महिलाओं के खिलाफ अत्याचारों की छिटपुट घटनाएं सामने आती रहती हैं, जो कि निंदनीय है। किसी भी सभ्य समाज में इस तरह की घटनाएं कतई स्वीकार्य नहीं हो सकतीं, जिस समाज में महिलाओं और पुरुषों की बराबरी की बात होती है, वहां इस तरह के विरोधाभासों के लिए कोई स्थान शेष नहीं रहना चाहिए।