रिवालसर झील में मरी मछलियां

ऐतिहासिक सरोवर में आक्सीजन की कमी; गाद, गंदा पानी माना जा रहा कारण

रिवालसर, कलखर —  तीन धर्मों की शरणस्थली और ऐतिहासिक व पवित्र झील के पानी का रंग बदलना लाखों मछलियों पर भारी पड़ा है। झील के पानी के रंग बदलने, प्रदूषण और आक्सीजन कम होने की कीमत दस टन मछलियों ने अपनी जान देकर चुकाई है। बुधवार को रिवालसर झील के किनारों और अंदर से दस टन मरी हुई मछलियों को निकाला गया। इन मछलियों को वैज्ञानिक तरीके से प्रशासन की देखरेख में दबाया गया। इसके साथ दो टै्रक्टर भर कर मछलियों को सुंदरनगर झील में भी शिफ्ट किया गया। बुधवार को जिला प्रशासन की पूरी टीम रिवालसर में दिन भर डटी रही। एडीसी मंडी की अध्यक्षता में मरी मछलियों को निकालने और शेष मछलियों को बचाने के लिए रेस्क्यू चलाया गया। साथ ही अब प्रशासन ने एनजीटी के आदेशों के बाद एक सोसायटी का भी गठन किया है। रिवालसर झील विकास सोसायटी अब झील को बचाने का प्रयास करेगी। इस कमेटी का अध्यक्ष एसडीएम बल्ह को बनाया गया। सोसायटी में संबंधित सरकारी विभागों के साथ गैर सरकारी सदस्यों को भी लिया जाएगा। वहीं बुधवार को प्रदशूषण नियंत्रण बोर्ड की टीम ने भी रिवालसर पहुंच कर झील का निरीक्षण किया और पानी के सैंपल भी लिए हैं। हालांकि अभी तक फाइनल रिपोर्ट नहीं आई है, लेकिन बताया जा रहा है कि झील का पानी उम्मीद के मुताबिक ज्यादा दूषित नहीं निकला है। बतां दे कि मंगलवार को अचानक झील का पानी का रंग बदल गया था। नीले रंग की झील मटमैली हो गई थी। इसके बाद रात को बड़ी संख्या में मछलियों के मरने का क्रम शुरू हो गया। बुधवार को सात टै्रक्टर मरी हुई मछलियों के निकाले गए। वहीं झील में बची मछलियों को बचाने के लिए 25 क्विटंल चूना भी डाला गया, ताकि झील में आक्सीजन की मात्रा बढ़ सके। इसके बाद ही नपं की टीम ने रिवालसर कस्बे के सभी बडे़ भवनों का भी औचक निरीक्षण किया। इसके बाद शाम को एडीएसी मंडी हरिकेश मीणा की अध्यक्षता में प्रशासन की बैठक भी हुई।

हर वर्ष मर रही मछलियां, कोई इलाज नहीं

11 महीने में नहीं हो सका एनजीटी के सुझावों पर अमल, 15 फुट रह गई झील की गहराई

मंडी  — हर वर्ष लाखों मछलियां अपनी जान गंवा कर रिवालसर झील को बचाने का संदेश देती आ रही हैं, लेकिन प्रशासन आज तक कोई ठोस कदम नहीं उठा सका है। बैशाखी मेले में उमड़े सैलाब के एकदम बाद अब पवित्र झील में दस टन मछलियों ने फिर से अपनी जान गंवा दी है। मंडी जिला प्रशासन की गंभीरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि एनजीटी की टीम द्वारा दिए गए सुझावों में 11 महीने में भी अमल नहीं हो सका है। एक सोसायटी बनाने की प्रकिया भी 11 महीने बाद जाकर पूरी हुई है। एनजीटी ने प्रदेश सरकार को एक दर्जन से अधिक अहम बिंदुओं पर कार्रवाई करने के लिए कहा था। इसमें झील को बचाने के लिए ग्रीन टैक्स लगाने का भी अहम सुझाव दिया गया था, लेकि न राजनीतिक दबाव के चलते यह भी आज तक लागू नहीं हो सका है। बता दें कि अस्सी के दशक में रिवालसर झील की गहराई 150 फुट के करीब हुआ करती थी, जो कि अब घटकर मात्र 15 फुट रह चुकी है। झील की इस दशा को लेकर स्थानीय निवासी धनंजय शर्मा ने पिछले साल नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल से शिकायत की थी। उनकी इस शिकायत को गंभीरता से लेते हुए ग्रीन ट्रिब्यूनल ने इस मामले को याचिका की तरह स्वीकार करते हुए 107/2016 दिनांक 28 मार्च, 2016 के तहत धनंजय बनाम राज्य सरकार बनाते हुए एक कमेटी का गठन करके रिपोर्ट मांगी थी। सिंचाई एवं जनस्वास्थ्य विभाग की सचिव अनुराधा ठाकुर, विनीत कुमार सदस्य सचिव राज्य प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड, निदेशक पर्यावरण, विज्ञान एवं टेक्नोलोजी पर आधारित इस कमेटी ने 30 अप्रैल व पहली मई, 2016 को रिवालसर का दौरा किया और अपनी रिपोर्ट में कई चौंकाने वाले खुलासे किए थे। इसमें मुख्य रूप से सीवरेज का सीधे रूप से झील में जाना, अवैध निर्माण व कब्जे, खुले में शौच, झील के जलग्रहण क्षेत्र में प्राकृतिक जल स्रोतों का खत्म होना, झील में गाद आना, मछलियों को ज्यादा खिलाना, संबंधित विभागों में आपसी तालमेल न होना व बजट आदि के प्रयोग को लेकर थे।

जहर मिलाने का मामला

रिवालसर झील में मछलियां मरने के पीछे झील में जहर मिलाने का आरोप भी लगाया गया है। वार्ड नंबर एक की पार्षद लीला वशिष्ठ ने पुलिस में दी शिकायत में आरोप लगाया है कि कुछ अज्ञात लोगों ने झील में जहर मिलाया है और इस कारण मछलियां मरी हैं। पुलिस अधीक्षक प्रेम कुमार ठाकुर ने बताया कि मामले की जांच की जा रही है।

पौंग-चंद्रताल-रेणुका रामसर साइट घोषित

प्रदेश में सिकुड़े वेटलैंड्स

शिमला — हिमाचल में तीन अंतरराष्ट्रीय स्तर के व दो राष्ट्रीय स्तर के वेटलैंड्स घोषित हैं। बावजूद इसके प्रदेश में गुजरात, पंजाब, ओडिशा व जम्मू-कश्मीर की तर्ज पर इन्हें टूरिज्म के लिहाज से विकसित करने की कभी कोई नीति तैयार नहीं हो सकी है, जबकि अन्य राज्यों में इन्हीं पर आधारित लाखों पर्यटक हर साल आकर्षित किए जाते हैं। इससे स्थानीय लोगों को रोजगार व स्वरोजगार के बड़े साधन मिलते हैं, और सरकारों को करोड़ों का राजस्व हासिल होता है।  हिमाचल में पौंग, रेणुका व चंद्रताल रामसर साइट्स घोषित हैं। रिवालसर व खजियार को राष्ट्रीय महत्त्व के वेटलैंड घोषित किए गए हैं, मगर इन्हें कभी भी टूरिज्म के लिहाज से विकसित करने के लिए संयुक्त प्रयास ही संबंधित विभाग नहीं कर पाए। वहीं ओडिशा के चिल्का लेक, पंजाब के हरिके, असम के लोकटक, जम्मू-कश्मीर के मानेसर, सुरिंसर और होकसर जैसे वेटलैंड इतने विकसित हैं कि हर साल देश-विदेश से लाखों पर्यटक यहां पहुंचते हैं। लेह-लद्दाख में भी यही आलम है, मगर हिमाचल के ये वेटलैंड ऐसे किसी भी बड़े कार्यक्रम के अभाव में अब या तो खजियार की तरह दम तोड़ने लगे हैं या फिर माइग्रेटिड बर्ड्स की आमद तक ही सीमित है। हर साल टूरिज्म के लिए करोड़ों के प्रोजेक्ट आते हैं। वन विभाग के पास भी करोड़ों रुपए का फंड निर्धारित रहता है, मगर इन वेटलैंड्स पर आधारित कभी भी कोई बड़ा कार्यक्रम तैयार नहीं हो सका।

रिवालसर है नायाब

रिवालसर ऐसा वेटलैंड है, जहां बौद्ध, सिख व हिंदू धर्म के अनुयायी हर साल पहुंचते हैं। यहीं सात सरें भी हैं, यानी पानी के ऐसे स्रोत, जिन्हें प्रकृति की अनूठी रचना कहा जा सकता है, मगर पर्यटन के लिहाज से इस क्षेत्र के लिए कोई कार्यक्रम तैयार नहीं हो सके हैं। जब यहां मछलियां मरती हैं, सिल्ट बढ़ती है, तभी प्रशासन व संबंधित एजेंसियां नींद से जागती हैं।

ये हैं प्रमुख वेटलैंड

गोबिंदसागर, पराशर लेक, मणिमहेश,  कुंतभयो, डल लेक, सकेती, चंद्रनाहन, भृगु लेक, महाकाल, दुशहर, रानीताल, भागसु नाग।