सपने अगर हों अपने और आंखें उधार की।
करना नहीं ए दर्दे दिल उम्मीदें बहार की।।
खुद चलानी सीख ले अपनी कश्तियां।
वरना न पार होगी यह नदिया संसार की।।
पालकी में बैठकर जो घूमते रहे।
बयान क्या करेंगे वो पीड़ा कहार की।।
जिनकी हरेक किताब में स्वार्थ ही लिखा।
कद्र क्या करेंगे वो दर्दे यार की।।
उफनती नदी है और कच्चा घड़ा तेरा।
कर न अडि़ये सोहणिये चाहत तू पार की।।
पाली जिन्होंने दिल में है नफरत की सर्पिणी।
क्या सुनेंगे दिल वो तेरी बातें प्यार की।।
माल बेचने को यहां इश्तिहार चाहिए।
सीख लो बारीकियां तुम भी बाजार की।।
दर्द के अंगारों से जब भी ये दिल जले।
देते हैं लफ्ज मुझको ठंडक फुहार की।