हिंदी का सम्मान

( डा. राजन मल्होत्रा, पालमपुर )

हिंदी को सार्वजनिक जीवन में सम्मानजनक स्थान दिलाने के संदर्भ में एक महत्त्वपूर्ण पहल हो रही है। आधिकारिक भाषा पर संसदीय राजभाषा समिति की नौंवी रिपोर्ट की ज्यादातर सिफारिशें राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने स्वीकार कर ली हैं। अब केंद्र का जिम्मा है कि वह सभी राज्यों के साथ मिलकर एक नीति बनाए और उन्हें क्रियान्वित करने का काम करे। मोदी सरकार से अपेक्षा रहेगी कि वह जल्द से जल्द इसे मूर्त रूप दे देगी। संसदीय राजभाषा समिति की सिफारिशों के अनुसार जो हिंदी बोल व पढ़ सकते हैं, उन्हें अपना भाषण हिंदी में ही देना चाहिए। इसमें सभी विशिष्ट लोग शामिल हैं। ध्यातव्य है कि हिंदोस्तान की अधिसंख्य आबादी हिंदी भाषा को  समझती है और इसी में वैचारिक आदान-प्रदान को पसंद करती है। इसके ठीक विपरीत हमारे नेता हिंदी के बजाय अंग्रेजी में भाषण देना अपनी शान समझते हैं। इस दौरान उन्हें इसका भी कोई ख्याल नहीं रहता है कि अपने भाषण के जरिए जिस वर्ग को वे संबोधित कर रहे हैं, क्या वह इसे समझ भी पा रहा है या नहीं। उन्हें तो बस अपने अंग्रेजी के ज्ञान की नुमाइश की पड़ी होती है। ऐसे में अब हिंदी के साथ न्याय करने की जो पहल हुई है, उसका स्वागत करना चाहिए। इसके साथ ही जिन लोगों पर यह बाध्यता नहीं होगी, उन्हें भी सार्वजनिक बोलचाल में हिंदी भाषा अपनाने की जरूरत है।