कर्ज पर बेजा विवाद

(रूप सिंह नेगी, सोलन)

आजकल प्रदेश में  सरकार  द्वारा ताजा कर्ज लेने और प्रदेश पर 50000 करोड़ के करीब की रकम कर्ज होने पर चर्चाओं का बाजार गर्म होना स्वाभाविक है, लेकिन कर्ज लेने के बिना विकास कर पाना भी तो मुमकिन नहीं होता है। गौरतलब  है कि समस्त भारत में शायद ही कोई राज्य होगा जो बिना कर्ज लिए विकास कर रहा हो, तो फिर विरोध करने में क्या औचित्य रह जाता है। पिछली सरकारों ने भी तो कर्ज लिया है तो फिर विरोध  का क्या तुक बनता है। गुजरात जैसा राज्य भी कर्ज से अछूता नहीं है। बताया जाता है कि गुजरात राज्य  पर 150000 करोड़ से ऊपर कर्ज है। कर्ज लेने में कोई बुराई नहीं होती है क्योंकि कर्ज से विकास की राह में तेजी आती है। चाहे देश की खुशहाली हो, चाहे राज्यों की खुशहाली हो, चाहे व्यक्तिगत खुशहाली हो बिना कर्ज के खुशहाली आना संभव नहीं  होता है  जो दशक दर दशक खुशहाली में इजाफा होता देखा जाता रहा है उसके पीछे कर्ज का बहुत बड़ा योगदान है और कर्ज मुहैया कराने में वर्ल्ड बैंक से लेकर देश की बैंकिंग प्रणाली की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। राजनीतिक दलों को केवल अपना स्वार्थ साधने की ही नहीं सोचना चाहिए और अपने गिरेबान में भी झांकना चाहिए।

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