कविताएं

समर्पण

आत्मा हैं हम

रचयिता हमारे तुम

परमात्मा।

तन, तुम्हारा उपहार

मन,

तुम्हारी कठपुतली

गुण, तुम्हारे आशीर्वाद

दोष तुम्हारे श्राप

बुद्धि, तुम्हारी देन

सब कुछ तुम्हारा,

तुमने ही दिया,

तुम ही लो,

श्रेय- हमारी उपलब्धियां का,

उत्तरदायित्व

विजय- पराजय का,

अपर्ण तुम्हे

सुख-दुख चिंताएं

जैसे अराधना,

अपना लेना अंततः

भले बुरे, जैसे हैं हम

नहीं इस योग्य तो,

बना देना हमें

स्वीकारणयी आत्मा,

ओ परमात्मा!

प्रेम रहे शेष

सूर्य रश्मियों के

स्नेहिल स्पर्श से

पिघलते हिम खंड

जता रहे,

कठोर से कठोर

हृदयों में छुपी है नर्मी,

ठोस बर्फ हो

या कठोर हृदय

द्रवित हो जाएं,

पाते ही सानिध्य

प्रेयमयी गर्मी का

ये गरमाहट

संजोए रखो,

जीवन को जीवन्त

बनाए रखने को

प्रेम बचाए रखो,

बांटते रहो, बढ़ाते

आनंद सहर्ष

बन स्नेहिल स्पर्श

रश्मियों सम

फैलो-फैलाओ प्रेम

पिधले-पिघल जाएं

घृणा, ईर्ष्या-द्वेष

प्रेम रहे शेष

और उसकी गरमाहट

पसरे चहुं ओर।

-प्रोमिला भारद्वाज

प्रबंधक जिला उद्योग केंद्र, मंडी

विवाह प्रस्ताव की तलाश कर रहे हैं? निःशुल्क रजिस्टर करें !