क्यों रुके पर्यटक

किसी ब्रांड एंबेसेडर को ढूंढ रहे हिमाचल पर्यटन के लिए चिंता का सबसे बड़ा सवाल यह है कि सैलानी ठहराव यहां लगातार नगण्य हो रहा है। एक स्वतंत्र एजेंसी के सर्वेक्षण में सबसे नकारात्मक पहलू भी यही है कि औसतन घरेलू पर्यटक मात्र एक ही रात ठहरकर लौट जाता है, जबकि विदेशी सैलानी भी दो रातें गुजार कर अपनी संभावना की इतिश्री कर रहे हैं। इसे हम पर्यटन सुविधाओं की कंगाली में देखें या विविध आकर्षण तक पहुंचने की कमी मानें, लेकिन इस तथ्य की पड़ताल आवश्यक है। हम न तो हिमाचली पर्यटन का कोई सलीका बना पाए और न ही पर्यटन को सलीके से संवार पाए। हिमाचली पर्यटन के हिस्से आई आंकड़ों की खूबसूरती को अगर पहचान लें, तो आर्थिक क्षमता का स्थायी डेस्टीनेशन स्थापित हो सकता है। पर्यटन क्षमता का निकास समझना होगा और यह भी देखना होगा कि परिभाषित सैलानी की परख में हम गिन क्या रहे हैं। हम जिन्हें बहुतायत में पर्यटक चुनते हैं, वे हिमाचली मंदिरों से लौटते श्रद्धालु हैं या धार्मिक समूहों की यात्रा का चित्रण है। कहीं न कहीं सही और प्रभावशाली पर्यटक को चुनने और आकर्षित करने में राजनीतिक नेतृत्व की कमजोरी परिलक्षित होती है। आस्था के सैलाब को वास्तविक पर्यटन में रूपांतरित करने के लिए न प्रयास हुए और न ही माकूल प्रसार। प्रदेश के परौर में पिछले हफ्ते हुए राधास्वामी सत्संग को ही लें तो अढ़ाई लाख श्रद्धालुओं की बदौलत पर्यटन के साक्ष्य तो मिले, लेकिन सैलानी नहीं। यह दीगर है कि ऐसे समागमों के दबाव में कानून व परिवहन व्यवस्था के अलावा पर्यावरण के प्रश्न भी मुखातिब होते हैं। कुछ इसी तरह प्रमुख आधा दर्जन मंदिरों, कुछ ऐतिहासिक गुरुद्वारों व धार्मिक यात्राओं में सम्मिलित होते सैलानियों को पहचानने और परोसने के लिए हमने किया क्या। इसलिए सैलानियों के आंकड़ों में वास्तविक पर्यटन को वैष्णो देवी या दक्षिण भारतीय राज्यों की तर्ज पर समझना और निखारना होगा। सिख व बौद्ध पर्यटन के हिमाचली सर्किट को राष्ट्रीय रोड मैप से जोड़ने के लिए मशक्कत की जरूरत है। विडंबना यह भी कि जो मुसाफिर एक दिन के हिमाचली सफर पर आ रहे हैं, उनके कारण सुरक्षा व पर्यावरण के मसले पैदा हो रहे हैं। पर्यटन के आरंभिक दौर ने हिमाचल में बहते नदी-नालों को आत्मघाती बना दिया है और सैलानी मौज मस्ती के नाम पर पानी में समा गए। ऐसे में हाई-वे पर्यटन से मनोरंजन पर्यटन तक फैली संभावना को तराशें, तो हर बीस किलोमीटर के बाद सुरक्षित मनोरंजन व सुविधा केंद्रों के जरिए पर्यटन को आश्वस्त किया जा सकता है। अभी न तो सैलानी हिमाचल के प्रति आश्वस्त हैं और न ही व्यस्त। जम्मू-कश्मीर के हालात से आजिज पर्यटक हिमाचल से जो चाहता है, उसे हम पूरा नहीं कर पा रहे। ऐसे में पर्यटक सीजन के मायने अवांछित भीड़ के हुड़दंग में समाप्त हो रहे हैं। डेस्टीनेशन पर्यटन के खाके में मजबूत होते करीब आधा दर्जन स्थलों ने न तो पूरे प्रदेश की छवि सुधारी और न ही अन्य विकल्प जोड़े, नतीजतन कंकरीट ने जकड़ लिया प्राकृतिक आनंद व दृश्यावलियां भी सिमट गईं। प्रदेश ने न तो हाई एंड टूरिज्म के मुताबिक ढांचा खड़ा किया और न ही ग्रामीण, ट्राइबल, एथनिक, युवा, साहसिक व धरोहर पर्यटन को प्राथमिक मानकर आगे  बढ़ाया। हिमाचल सबसे अधिक युवाओं को रास आ रहा है और यह वर्ग ट्रैकिंग, पर्वतारोहण, पैराग्लाइडिंग व जलक्रीड़ाओं के जरिए कुछ दिन गुजार रहा है। इसके अलावा होम स्टे की परिकल्पना में मध्यमवर्गीय घरेलू सैलानी ने हिमाचली जीवन की पड़ताल शुरू की है, लेकिन हम ग्रामीण पर्यटन को पूरी तरह रूपांतरित नहीं कर पा रहे। योग और प्राकृतिक चिकित्सा से जुड़े हैल्थ टूरिज्म में अगर आयुर्वेदिक विभाग अपनी भूमिका तराश पाता, तो स्थिति कुछ और होती। ईको टूरिज्म पर नीतियों का अंबार इतना भारी रहा कि विश्व के कई अछूते स्थलों के बावजूद, हिमाचल इस संभावना को नहीं छू पा रहा। वन विभाग के अढ़ाई सौ के करीब डाक बंगलों में हम पर्यटक को हफ्तों रोक सकते हैं, लेकिन जमीनी सच यह है कि पर्यटन किसी नीति के बजाय राजनीति से हांका जा रहा है। सरकारी निगम पर सवार राजनीतिक महत्त्वाकांक्षा ने प्रदर्शन व औचित्य पर निरंतर विपरीत असर डाला है। पर्यटक का एक परिदृश्य कान्वेंशन टूरिज्म में छिपा है और अगर तीनों हवाई अड्डों के साथ मुकम्मल अधोसंरचना से सुसज्जित परिसर विकसित करें तो कारपोरेट पर्यटन का महत्त्वपूर्ण आंकड़ा भी जुड़ सकता है। इसी तरह सिने पर्यटन को संबोधित करने से सैलानियों का कारवां नए स्थलों की ओर निकल सकता है। हिमाचल में पर्यटन को किसी सिने हस्ती के जरिए ब्रांडिंग की जरूरत नहीं, बल्कि ब्रांड हिमाचल बनाने के लिए समस्त क्षमता को एक सूत्र में पिरोना होगा।

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