पूरा-पूरा तोल रे बाबा।
सच की खिड़की खोल रे बाबा।
भेद घरों के खुल न जाएं,
बंद मुट्ठी न खोल रे बाबा।
पत्थर मार उड़ा न देना,
पंछी करत किलोल रे बाबा।
गुमसुम-गुमसुम क्यों बैठा है,
कुछ तो मंुह से बोल रे बाबा।
उस ने दुनिया को लूटा है,
जो बनता अमनोल रे बाबा।
अंबर को फिर छू जाएगा,
पंछी के पर खोल रे बाबा।
यादों की सूखी शाखों पर,
बूर पड़ा अनमोल रे बाबा।
तू सूरज है, तू धरती है,
कौन तेरे रामतोल रे बाबा।
गलियों में मत मांगा कर अब,
करते लोग ठिठोल रे बाबा।
इज्जत, शोहरत, जिस्म, मोहब्बत,
क्या नहीं बिकता मोल रे बाबा।
तू भी नाच जमाना नाचे,
झूठ का बाजे ढोल रे बाबा।
दुनिया क्या है यह बतलाए,
मकड़ी का है झोल रे बाबा।
रिश्वत, भ्रष्टाचार, ईर्ष्या,
बिगड़ गया भूगोल रे बाबा।
उजड़ी मांग सुहागन कर दे,
रंग उलफत के घोल रे बाबा।
फिर अंधेरे की अर्थी पर,
जुगनूं कोई टटोल रे बाबा।
‘बालम’ को तो लूट रहे हैं,
चिकने चुपड़े बोल रे बाबा।