छात्रसंघ चुनाव भी बंद पर नहीं रुका खूनी खेल

शिमला  – हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में छात्र गुटों के बीच हिंसक घटनाएं और खूनी खेल रुकने का नाम नहीं ले रहा। विश्वविद्यालय प्रशासन ने तीन साल से विश्वविद्यालय सहित प्रदेश के कालेजों में छात्रसंघ चुनावों पर भी बैन लगा दिया है, बावजूद इसके छात्र गुटों की सक्रियता और विश्वविद्यालय में उनकी हिंसा रुकने का नाम नहीं ले रही। विवि प्रशासन सहित सरकार ने शिक्षण संस्थानों में छात्र संघ चुनावों पर इसी उद्देश्य से रोक लगाई थी कि परिसर में इन छात्र संगठनों की गतिविधियां कम हों और हिंसा का माहौल इन संस्थानों में न बनाकर शैक्षणिक माहौल छात्रों के लिए तैयार किया जा सके। छात्र संघ चुनाव तो बैन हो गए, लेकिन इन्हें बैन करने का उद्देश्य सफल नहीं हो पाया है। एचपीयू के साथ छात्र राजनीति और इनकी हिंसा का बड़ा पुराना इतिहास रहा है। विश्वविद्यालय के अब तक के सफर में छात्र गुटों की आपसी रंजिश और टकरार के चलते विवि छात्रों के खून से कई बार रंग चुकी है। इन सब घटनाओं के बाद भी विश्वविद्यालय का वर्तमान भी उसी दौर से गुजर रहा है, इसमें किसी तरह का कोई परिवर्तन नहीं हुआ है। विश्वविद्यालय में छात्र संघ चुनाव बंद हुए तीन साल हो चुके हैं। अभी भी परिसर में छात्र संगठन एबीवीपी, एसएफआई संगठन पूरी तरह से सक्रिय है। इनकी सक्रियता पर विवि प्रशासन भी रोक लगाने में नाकामयाब साबित हो रहा है। छात्र हितों की मांगों को लेकर यह संगठन वर्ष भर विवि के अधिकारियों के समक्ष ये मांगें रखने के साथ ही छात्र समस्याओं का समाधान भी करते हैं। बावजूद इसके इनकी हिंसा विवि की छवि और शैक्षणिक माहौल को खासा असर पहुंचा रही है। बात की जाए विवि में तीन साल की तो जब से विवि में छात्र संघ चुनाव बैन किए गए हैं, तब से मात्र एक वर्ष में ही छात्र गुटों के बीच हिंसा की घटना नहीं हुई। विवि की ओर से अगस्त 2016 में विवि सहित प्रदेश भर के कालेजों में छात्र संघ चुनावों पर रोक लगाने के साथ ही विवि में फीस वृद्धि का फैसला लिया गया था। इस फैसले के बाद एबीवीपी और एसएफआई दोनों छात्र संगठन इन दोनों मुद्दों पर आंदोलन करने में व्यस्त रहे। वर्ष 2015 तक इन दोनों गुटों में कोई हिंसक झड़प नहीं हुई। इसके बाद वर्ष 2016 में 21 मार्च और फिर नौ जुलाई को एबीवीपी और एसएफआई के बीच पथराव और तेजधार हथियार से हमला करने की घटनाएं हुईं। इसके बाद बड़ी हिंसक घटना नैक के दौरे पहले अक्तूबर में हुई। इसमें 18 छात्रों को गंभीर चोटें आई हैं। इन घटनाओं के बाद वर्ष 2017 में यह हिंसक घटना दोनों गुटों के बीच हुई। इससे पहले मार्च, 2017 में भी ये दोनों गुट आपस में भीड़े थे। विवि ने इस सभी मामलों में छात्रों पर कार्रवाई भी की और छात्र गिरफ्तार भी हुए, लेकिन खूनी खेल अभी भी जारी है। चुनावों को जिस मकसद से बंद किया गया था, वह मकसद एचपीयू में पूरा नहीं हो पाया। छात्र अपनी तकरार की आड़ में हिंसक घटनाओं से कालेजों का माहौल खराब कर रहे हैं।

तीन-चार गंवा चुके हैं जान

एचपीयू में छात्र गुटों के बीच हुई हिंसक घटनाओं में तीन-चार जान गंवा चुके हैं। एक छात्र भी छात्र गुटों की इन हिंसा में जान वर्ष 1978 में गवां चुके हैं। इन नेताओं में वर्ष 1984 में विवि के छात्र भरत भूषण को जान गंवानी पड़ी। 1987 में एनएसयूआई के कार्यकर्ता नासिर खान की हत्या कर दी गई, जबकि 1995 में एबीवीपी के कुलदीप ढटवालिया की हत्या छात्र गुटों की हिंसक घटना में हुई थी।

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