धार्मिक संस्थान संरक्षण को विशेष निधि

पूजा-अर्चना, रखरखाव के लिए शुरू की अनुदान योजना

शिमला —  देवभूमि के रूप में विख्यात हिमाचल प्रदेश में धार्मिक संस्थानों की एक समृद्ध विरासत है। इस समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण एवं प्रोत्साहन के लिए प्रदेश सरकार ने एक महत्त्वपूर्ण पहल करते हुए आवर्ती निधि के माध्यम से धार्मिक संस्थानों की पूजा-अर्चना एवं रखरखाव के लिए अनुदान योजना आरंभ की है। विगत में प्रदेश के बहुत से मंदिरों की अपनी भू-संपदा थी, जिससे प्राप्त आय का उपयोग धार्मिक संस्थानों के रखरखाव व दैनिक पूजा-अर्चना इत्यादि के लिए किया जाता था। विभिन्न भूमि सुधार कानूनों के क्रियान्वयन के कारण बहुत से धार्मिक सस्ंथानों की भू-संपदा मुजारों अथवा सरकार में निहित होने के फलस्वरूप उनकी आय में भारी कमी आई है। इसके कारण धार्मिक संस्थानों का रखरखाव यहां तक कि नियमित पूजा-अर्चना भी ठीक तरह से नहीं हो पा रही है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए हिमाचल सरकार ने आवर्ती निधि का सृजन किया है। आवर्ती निधि के सृजन का उद्देश्य धार्मिक संस्थानों में नित्य प्रति पूजा आदि विधिवत संचालन, इन संस्थानों का समुचित रखरखाव और इनकी आय बढ़ाना है। भाषा एवं संस्कृति विभाग के निदेशक आवर्ती निधि की राशि को वित्त विभाग द्वारा समय-समय पर जारी नियमों के अनुसार सर्वाधिक ब्याज देने वाले राष्ट्रीय अथवा राज्य सहकारी बैंक में विभिन्न अवधि की सावधि जमा खाता योजना में जमा करवाएंगे। इससे प्राप्त ब्याज राशि का सदुपयोग योजना के कार्यान्वयन के लिए किया जाएगा। इस प्रकार कुल प्राप्त ब्याज राशि से इस योजना में आने वाले धार्मिक सस्ंथानों को वार्षिक या एकमुश्त अनुदान प्रदान किया जाएगा। सावधि व बचत खातों के संचालन का उत्तरदायित्व विभागीय निदेशक को सौंपा गया है। वार्षिक अनुदान के अंतर्गत धार्मिक संस्थानों में नित्य प्रति पूजा आदि को विधिवत चलाने व रखरखाव करने के लिए हर वर्ष एक निश्चित धनराशि अनुदान के रूप में प्रदान की जाएगी।

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