प्रदेश में अपार जैव संसाधन मौजूद

पारंपरिक ज्ञान के उपयोग व लाभ विषय पर वार्ता आयोजित

 शिमला— जैव संसाधन से संबद्ध पारंपरिक ज्ञान का संरक्षण बहुत आवश्यक है। इसके लिए प्रदेश में जैव विविधता बोर्ड द्वारा सराहनीय प्रयास किए जा रहे हैं। ये शब्द अतिरिक्त मुख्य सचिव पर्यावरण विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी तरुण कपूर ने कहे। मंगलवार को वह हिमाचल प्रदेश जैव विविधता बोर्ड द्वारा जैव विविधता प्राधिकरण, चेन्नई के तकनीकी सहयोग से पारंपरिक ज्ञान, उपयोग व लाभ साझा बंटवारा विषय पर आयोजित द्वितीय राष्ट्र स्तरीय वार्ता की अध्यक्षता करते कर रहे थे। इस वार्ता का मुख्य उद्देश्य राज्य में पारंपरिक ज्ञान, सूचना, नवाचारों व जैविक संसाधनों से संबंधित पेटेंट पर चर्चा करना और इससे जुड़े विभिन्न मुद्दों पर विशेषज्ञों के बीच अनुभव साझा करना है। उन्होंने कहा कि हिमाचल प्रदेश में अपार जैव संसाधन विद्यमान है। प्रदेश में वन क्षेत्र 66 फीसदी से बढ़कर लगभग 70 फीसदी तक पहुंच गया है। राज्य जैव विविधता बोर्ड का गठन वर्ष 2005 में किया गया था। निदेशक पर्यावरण विज्ञान एवं प्रोद्योगिकी अर्चना शर्मा ने जैव विविधता अधिनियम और इससे जुड़े अन्य विभिन्न मुद्दों की विस्तृत जानकारी दी। इस वार्ता में हिमाचल प्रदेश, गुजरात, केरल, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, गोआ, सिक्किम, तेलंगाना, ओडिशा और पश्चिम बंगाल के विशेषज्ञ हिस्सा ले रहे हैं। यह वार्ता चार मई तक आयोजित की जाएगी। इस अवसर पर एसएस नेगी पीसीसीएफ, डा. जीएस गोराया पीसीसीएफ, टी रबी कुमार एनबीएस सचिव, ईश्वर पूज्जर प्रबंधक यूएनईपी आदि उपस्थित थे। वहीं चेयरमैन एसबीबी उत्तराखंड डा. राकेश शाह ने कहा कि अपनी संस्कृति व देशी प्रजातियों का संरक्षण जरूरी है। उन्होंने देशी गाय जेबो की मिसाल देते हुए कहा कि इसे आयातीत जर्सी से क्रॉस करवा दिया गया। भले ही दूध की मात्रा बढ़ी, मगर बाद में इस सर्च के दौरान पाया गया कि जो महत्ता व उपयोगिता पहाड़ी गाय के दूध की थी, उसका कुछ फीसदी ही जर्सी गाय के दूध में बचा था।

विवाह प्रस्ताव की तलाश कर रहे हैं? निःशुल्क रजिस्टर करें !