प्रदेश में टीबी के हर साल 15 हजार केस

शिमला – क्षय रोग एक बहुत पुरानी बीमारी है, जिसका उपचार आज चिकित्सा विज्ञान के सफल प्रयासों से ही संभव हो सका है। राष्ट्रीय टीबी नियंत्रण कार्यक्रम वर्ष 1962 में आरंभ किया गया तथा बाद में इसे संशोधित राष्ट्रीय टीबी नियंत्रण कार्यक्रम में परिवर्तित किया गया। वर्ष 1995 में हमीरपुर जिला से प्रायोगिक परियोजना के तौर पर संशोधित राष्ट्रीय टीबी नियंत्रण कार्यक्रम आरंभ किया गया तथा वर्ष 2002 तक पूरे प्रदेश में इसे लागू किया गया। प्रदेश में प्रति वर्ष क्षय रोग के लगभग 15000 नए मामले दर्ज किए जाते हैं, जबकि लगभग 9000 टीबी रोगी निजी क्षेत्र से उपचार के लिए आते हैं। यह संतोषजनक बात है कि प्रदेश में टीबी के मामलों का पता लगाना तथा उपचार करने की दर राष्ट्रीय दर से काफी बेहतर है। भारत सरकार ने वर्ष 2025 तक देश को टीबी मुक्त बनाने का लक्ष्य रखा है, जबकि हिमाचल ने इस लक्ष्य को वर्ष 2023 तक हासिल कर देश का पहला टीबी मुक्त राज्य बनाने का लक्ष्य रखा है। हमीरपुर से शुरुआत करते हुए कांगड़ा के धर्मशाला तथा मंडी में 1998 में आरएनटीसीपी कार्यक्रम लागू किया गया। इसी तरह पहली जुलाई, 2000 से शिमला, सोलन तथा सिरमौर जिलों में सेवाएं आरंभ की गईं। शेष छह जिलों में से लाहुल-स्पीति, ऊना तथा कुल्लू में वर्ष 2001 की पहली तिमाही तथा बिलासपुर में वर्ष 2001 की दूसरी तिमाही में यह सेवाएं आरंभ की गई। कार्यक्रम के अंतर्गत प्रदेश में एक टीबी अस्पताल, 12 जिला टीबी केंद्र 72 टीबी इकाइयां, 208 माइक्रोस्कोपिक केंद्रों को क्रियाशील बनाया गया है। नौ जिलों में सीबीएनएएटी मशीनें स्थापित की गई हैं तथा कुल्लू, रिकांगपिओ, केलांग, रामपुर व पालमपुर के लिए चार अतिरिक्त मशीनें स्वीकृत करवाई गई हैं। वर्ष 2017 में आरएनटीसीपी के तहत 11.53 करोड़ रुपए की राशि स्वीकृत की गई थी। इस वित्त वर्ष में 5.84 करोड़ रुपए स्वीकृत किए गए, जिसमें से 7.24 करोड़ रुपए व्यय किए गए। वर्तमान वित्त वर्ष के लिए 15.79 करोड़ रुपए की निधि का प्रस्ताव स्वीकृति हेतु भेजा गया है।

अपग्रेड करने के लिए पांच करोड़

सोलन में धर्मपुर स्थित टीबी अस्पताल बहुत पुराना एवं प्रसिद्ध टीबी आरोग्य अस्पताल है। यहां आरएनटीसीपी के कई घटक हैं, जैसे टीबी रोगी वार्ड, आईआरएल लैब, राज्य दवाई भंडारण, टीबी प्रशिक्षण केंद्र तथा डीआरटीबी केंद्र इत्यादि। राष्ट्रीय दलों ने इस अस्पताल का दौरा करने के उपरांत इसे सेंटर ऑफ  एक्सीलेंस के तौर पर विकसित करने का सुझाव दिया, जिससे न केवल हिमाचल बल्कि पड़ोसी राज्यों को भी लाभ होगा। इसके स्तरोन्यन के लिए पांच करोड़ की अतिरिक्त निधि की मांग की गई है।

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