बंदरों के खिलाफ विधायक

बंदर मारने की दुआएं अगर कबूल हों, तो यह पुण्य कमा कर हिमाचल सरकार के एक मुख्य संसदीय सचिव ने उदाहरण पेश कर दिया। सुलाह क्षेत्र के विधायक व सीपीएस जगजीवन पाल ने, अपने सियासी मुहावरों को छोड़ कर सामाजिक प्राथमिकताओं में खुद को आगे करते हुए, खेत से बंदर का नामोनिशान मिटाने की प्रतिज्ञा ली है। अपने उद्देश्य की बागडोर में विधायक जगजीवन पाल ने बाकायदा परौर पंचायत में छह बंदरों को निशाना बनाया। सरकार की ओर से ऐसी कितनी ही पंचायतों को बंदर मारने की स्वीकृति प्रदान है, लेकिन ऐसे अभियान का नेतृत्व कहीं नहीं हो रहा। ऐसे में एक विधायक अगर किसान के खेत पर खड़ा हो रहा है और उसके निशाने पर उत्पाती बंदर हैं, तो जगजीवन पाल के साहस को साधुवाद। हिमाचल प्रदेश में चर्चा का सबसे बड़ा विषय होने के नाते बंदर को हम किसी भी सूरत और पैमाने से हरगिज बदारस्त नहीं कर सकते। कई तहसीलों में बंदर के खिलाफ सजा-ए-मौत का फैसला आने के बावजूद हमारे पास वे हाथ नहीं, जो गोली दाग दें। बेशक सरकारी चिट्ठियों के मार्फत बंदर से किसान को बचाने की घोषणाएं सिर चढ़ कर बोलीं, लेकिन ऐसे इंतकाम की कहीं से शुरुआत नहीं हुई। ऐसे में जगजीवन पाल ने वह काम करना शुरू कर दिया, जिसे वन मंत्री की फाइलें भी नहीं कर पाईं। अगर वन मंत्री संजीदा होते, तो बाकायदा शिकारी नियुक्त करके बारूद का इतना ढेर लगाते कि बंदर पुनः जंगल में पनाह ढूंढता। यह कार्य एक विशेष टास्क फोर्स के मार्फत ही संभव है और इस दिशा में सुलाह के विधायक ने न केवल हिम्मत दिखाई, बल्कि बंदर मारने का सही तरीका भी प्रदर्शित किया है। विधायक ने इससे पूर्व आवारा पशुओं के खिलाफ भी मुहिम के जरिए गोवंश के पुनर्वास को अमलीजामा पहनाया है। जहां पूरा सियासी अमला आपसी प्रतिस्पर्धा में निरंतर अपनी-अपनी सत्ता का ध्वजवाहक बना हुआ है, वहां अगर एक विधायक बंदरों और आवारा पशुओं से किसान को बचाने में प्रयत्नशील है, तो कहीं आशा की लालटेन जल रही है। यह अलग बात है कि मौजूदा व्यवस्था के बीच जगजीवन पाल को कितनी सफलता मिलती है या उनके प्रयास को जनता किस तरह अंगीकार करती है, लेकिन सार्वजनिक रूप से किसी विधायक का यही तो कर्त्तव्य बनता है। इससे पहले भी विधायक ने सरकारी स्कूलों के वार्षिक समारोहों में अपनी हाजिरी बतौर मुख्यातिथि से हटा कर यह पैगाम दिया कि जनप्रतिनिधि सरकारी संसाधनों की सौगात नहीं। प्रयास के अपने पहरे चुनते हुए जगजीवन पाल ने युवा पीढ़ी को नशे और दोपहिया वाहनों पर बेलगाम घूमने के खिलाफ अभियान छेड़ा। खासतौर पर बिना हेलमेट वाहन सवार युवाओं को अनुशासित जिंदगी का सबब समझाने की कोशिश अगर विधायक कर सकता है, तो समाज के हर शख्स को अपना दायित्व समझना होगा। सरकार के अंगने में तो वनमंत्री की घोषणाओं का लबादा बार-बार उतरा है और यह भी एक हकीकत है कि किसान को निरंतर बंदर ने खेती से महरूम कर दिया है। बंदरों के खिलाफ तमाम नाकामयाबियों का ठीकरा अगर सरकार पर फूटता है, तो भी सुलाह क्षेत्र में हुई विधायक की पहल एक मजबूत संदेश देती रहेगी। क्यों नहीं तमाम जनप्रतिनिधि अपनी कंदराओं से बाहर निकल कर किसान का खेत देखें और जगजीवन पाल का अनुसरण करके बंदर मारने की हिम्मत जुटाएं। निश्चित रूप से किसान का खेत दुआएं देगा।

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