भारत का इतिहास

वयस्क मताधिकार से बने संविधान सभा

दूसरा विश्वयुद्ध आरंभ होने पर भारतीय स्वतंत्रता का प्रश्न और उसके साथ ही संविधान सभा का विचार भी प्रमुख रूप से उभर कर सामने आया। कांग्रेस ने 14 सितंबर,1939 के अपने ऐतिहासिक प्रस्ताव में अपनी संविधान सभा की मांग फिर दोहराई और कहा कि भारतीय लोगों को बिना किसी बाहरी हस्तेक्षप के संविधान सभा द्वारा अपने विधान का निर्माण करने का अधिकार प्राप्त होना चाहिए। कांग्रेस की इस मांग का सरकार ने सिर्फ यह उत्तर दिया कि भारत में ब्रिटिश नीति का अंतिम उद्देश्य देश में डोमिनियन स्टेटस की स्थापना करना है और युद्ध समाप्त होने पर ब्रिटिश सरकार भारत की विभिन्न जातियों, दलों और हितों के प्रतिनिधियों से तथा देशी नरेशों से विचार-विनिमय करेगी, जिससे कि 1935 के अधिनियम में आवश्यक संशोधन करने के लिए उनकी सहायता और सहयोग प्राप्त किया जा सके। सरकार का यह उत्तर कांग्रेस को नितांत असंतोषजनक लगा और कांग्रेस कार्यकारिणी समिति ने नवंबर 1939 में एक अन्य प्रस्ताव पास किया, जिसमें उसने भारत के लिए संविधान सभा स्थापना पर जोर दिया। 19 नवंबर के हरिजन में ‘एक ही रास्ता’ शीर्षक से एक लेख में महात्मा गांधी ने भी संविधान सभा की राष्ट्रीय मांग पर सविस्तार विचार किया और इस निष्कर्ष की घोषणा की कि वयस्क मताधिकार के आधार पर निर्वाचित संविधान सभा ही देश की सांप्रदायिक तथा अन्य समस्याओं को सुलझाने का एकमात्र रास्ता है। इसी बीच देश की सांप्रदायिक समस्या में एक नया मोड़ पैदा हो गया। मुस्लिम लीग कहने लग गई कि मुसलमान एक जाति नहीं है बल्कि एक राष्ट्र है और इसलिए उन्हें राजनीतिक आत्म निर्णय का अधिकार प्राप्त है। इतना ही नहीं, मुस्लिम लीग का यह भी दावा था कि उसकी स्वीकृति के बिना देश की सांविधानिक उन्नति नहीं हो सकती। मुस्लिम लीग की काय र्समिति ने 17-18 सितंबर, 1939 को एक प्रस्ताव में सरकार से यह आश्वासन मांगा कि अखिल भारतीय मुस्लिम लीग की सहमति और स्वीकृति के बिना न तो भारत की सांविधानिक प्रगति के संबंध में कोई घोषणा की जाएगी और न ब्रिटिश सरकार अथवा संसद कोई संविधान बनाएगी या स्वीकारेगी। कांग्रेस के रामगढ़ अधिवेशन में मार्च 1940 में पास किए गए प्रस्ताव में और बातों के साथ-साथ पूर्ण स्वाधीनता की मांग को दोहराया गया था और भावी संविधान के आदशों का उल्लेख किया गया था। वैसा करने से भारत ब्रिटिश नीति से और उसके आर्थिक संघटन से कई तरह से बंध जाएगा। वयस्क माताधिकार के आधार पर निर्वाचित संविधान सभा के माध्यम से स्वयं भारतीय ही अपने लिए अपना संविधान बना सकते हैं और दूसरे देशों के साथ भारत के संबंधों के बारे में निर्णय ले सकते हैं।

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