मजदूर तो वहीं खड़ा है!

(केसी शर्मा , सूबेदार मेजर (रिटायर्ड), गगल, कांगड़ा)

नेताओं के वेतन कहां से कहां तक पहुंच गए, परंतु दिहाड़ीदार की दिहाड़ी मात्र दो या अढ़ाई सौ रुपए ही है। केंद्रीय या राज्य कर्मचारियों को सातवें वेतन आयोग ने कर्मचारियों को काफी लाभ पहुंचाया है। प्रधानमंत्री का कथन है कि सबका साथ सबका विकास। अगर यह कथन सही है तो मजदूर वर्ग के हित केंद्र और राज्य सरकार क्यों सुनिश्चित नहीं करती। नेताओं और सरकारों की कथनी और करनी में अंतर है। प्रदेश में बाहरी मजदूरों की भरमार है यह प्रवासी मजदूर हमारे मजदूरों की तुलना में अधिक निपुण और सार्थक है। यही कारण है हमारे मजदूर बेरोजगारी की कगार तक पहुंच गए। मनरेगा के मजदूरों की दिहाड़ी कम से कम अढ़ाई सौ तो हो। प्रदेश में तमाम प्रोजेक्टों में प्रवासी मजदूर कार्य कर रहे हैं। कारण यह कि ठेकेदार भी बाहरी राज्यों में बेरोजगारी के कारण से ही मजदूर वर्ग का शोषण करते हैं। हिमाचल सरकार भी जब कभी मजदूर की दिहाड़ी 10 रुपए बढ़ाती है, तो समाचार पत्रों में कई दिन छपता रहता रहता है कि सरकार मजदूर हितैषी है। भला 10 रुपए दिहाड़ी बढ़ाना आज के दौर में कितना न्याय संगत है। नेताओं की बात करें, तो उन्हें तो वाकआउट करने के भी पैसे मिल जाते हैं और मजदूर को मनरेगा की दिहाड़ी के लिए कई-कई महीने तक चक्कर लगाने पड़ते हैं।

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