‘ मीरथल ’ से पंजाब में प्रवेश करती है ब्यास नदी

ब्यास नदी के किनारे बसने वाले प्रसिद्ध कस्बे मनाली, कुल्लू, बजौरा, औट, पंडोह, मंडी, सुजानपुर (टीहरा), नादौन और देहरा गोपीपुर हैं। हिमाचल प्रदेश में 256 किलोमीटर की दूरी तय करके ब्यास नदी ‘मीरथल’ नामक स्थान पर पंजाब में प्रवेश कर जाती है…

हिमाचल की नदियां

ब्यास नदी – आजकल यह खड्ड उक्त भूमि के अतिरिक्त विभिन्न सिंचाई  परियोजनाओं द्वारा लगभग 300 हेक्टेयर भूमि (वर्ष 2014) को सिंचित करती है। मान खड्ड के किनारे स्थित कई ऐतिहासिक धार्मिक स्थल हैं, जिनमें प्रमुख हैं-नादौन का ऐतिहासिक गुरुद्वारा, साई फजलशाह की मजार तथा लवणेश्वर महादेव का मंदिर। यहां की सर्वधर्मसंभाव की मनोवृत्ति तथा ‘एकं सद्विप्राः बहुधावदंति’ (ईश्वर एक है लेकिन अलग-अलग नामों से जाना जाता है) के वैदिक उद्घोष की सार्थकता प्रदान करते हैं। मान खड्ड के किनारे स्थित गांव गलोल में महात्मा मिहिर दास का पावन स्थान वट वृक्षों से घिरा है। इसलिए इसका नाम ‘साधबड़’ प्रसिद्ध है। नादौन की बगल से सरकती ब्यास निरंतर धीमी पड़ती जाती है। यहां की अर्द्धवृत्ताकार में मोड़ काटती ब्यास भटोली फकोरियां की बगलगीर बनती नगरोटा सूरियां के पार नरहयाणा के पत्तन पर बिछती चली जाती है। यहीं आसपास बनेर या बाणगंगा का इसमें संगम होता है। चतरंबा के पास गज और महूल खड्डें  ब्यास से मिलती हैं। चतरंबा में ही ब्यास नदी पर एक भव्य रेल पुल है। इसे ‘कड्डी दा पुल’ भी कहते हैं। घाटी और टैरस के गांव, भू-भाग और पश्चिम उत्तर की ओर धमेटा, फतेहपुर, जवाली आदि लोकप्रिय स्थान और ‘सधाते दा हार’ (मैदानी उपजाऊ भूमि) ब्यास के इर्द-गिर्द स्थित हैं। ब्यास नरहयाणा के पत्तन पर अपने संबंध बढ़ाती सुंदर पंजाब में मीरथल स्थान पर निकल जाने से पूर्व जिला चंबा की तहसील भटियात की ऊपरी पहाडि़योें से निकली ‘चक्की खड्ड’ को अपने में विलीन करती है। पंडोह (मंडी से 14 किलोमीटर) के स्थान पर बांध बनाकर इस नदी के पानी को सुरंगों और नहर द्वारा ले जाकर सलापड़ नामक स्थान पर सतलुज नदी में डाला गया है। देहरा गोपीपुर से 35 किलोमीटर पश्चिम- उत्तर की ओर इस नदी पर पौंग बांध बांधा गया है। इसके किनारे बसने वाले प्रसिद्ध कस्बे मनाली, कुल्लू, बजौरा, औट, पंडोह, मंडी, सुजानपुर (टीहरा), नादौन और देहरा गोपीपुर हैं। हिमाचल प्रदेश में 256 किलोमीटर की दूरी तय करके ब्यास नदी ‘मीरथल’ नामक स्थान पर पंजाब में प्रवेश कर जाती है।

रावी नदी – वेदों में ‘परूशिनी’ और संस्कृत वाड्मय (1000 ई. पूर्व)में ‘ईरावती’ के नाम से विख्यात यह नदी धौलाधार पर्वत शृंखला के बड़ा भंगाल क्षेत्र के भादल और तांतगुरी नामक दो हिमखंडों के संयुक्त होने से गहरी खड्ड के रूप में निकलती है।

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