शब्द वृत्ति

( डा. सत्येंद्र शर्मा, चिंबलहार, पालमपुर )

ईवीएम की नौटंकी

मूक, बधिर क्यों बन गए, कुछ तो बोलें आप,

कहां लुटी शुचिता, कहां सच्चाई का जाप।

सचमुच गए डकार या राजनीति की चाल,

समय बताएगा बुना, किसने छिपकर जाल।

मेले में ढूंढा बहुत, कहां खो गए आप,

अन्ना को मक्खी समझ, फेंका उसका श्राप।

चाबुक से दल हांकता, कैसा तानाशाह,

मंत्री का चाबुक पड़ा, निकल गई अब आह।

जिह्वा बेकाबू हुई, तभी हुआ नाकाम,

खाकी को भी गालियां, ठुल्ला कहना काम।

हीरे-मोती जानकर, खूब मिला सत्कार,

अब कचरे के ढेर को, दिल्ली रही नकार।

तिल नकली, बिन तेल के, आधे पसरे जेल,

बिन इंजन, बिन पटरियां, उड़ती छुकछुक रेल।

कालिख से काली हुई, इस दल की पहचान,

दल अब दलदल बन गया, धंसे हुए श्रीमान।

ड्रामेबाज है बड़ा, रचा ईवीएम का खेल,

पारदर्शिता, ईमानदारी आज, चली बेचने तेल।

आमजनों का खो दिया, पूर्णतया विश्वास,

राजयोग अब खत्म है, जल्दी लें संन्यास।

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