शिक्षा के खूनी मंदिर

( करण सिंह, चंबा  )

यह कैसी शिक्षा जो जीना नहीं मरना-मारना सिखाती हो। हाल ही में छात्र गुटों के बीच हो रहे खूनी संघर्ष खूब सुर्खियां बन रहे हैं। आखिर इन सब का जिम्मेदार कौन है? जहां पढ़ाई का माहौल होना चाहिए वहां खूनी खेल हो रहा है। छात्र संघ चुनावों को इसलिए नही होने दिया जा रहा क्योंकि वह हिंसा का कारण बनते हैं। अब तो छात्र संघ चुनाव भी नही हो रहे फिर भी कालेजों और विश्वविद्यालयों के छात्र गुट आपस में लड़ रहे हैं। इसके पीछे सबसे बड़ी वजह यही है कि शिक्षा में राजनीति का दखल हद से ज्यादा हो रहा है। छात्रों को राजनीतिक महत्त्वकांक्षा के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय देश के 100 कालेजों में भी रैंकिंग नही ला सका तो उसकी वजह भी राजनीति ही है। नैक के ‘ए’ ग्रेड देने से क्या होगा। आंकड़ों के अव्वल आने से क्या होगा, जब हकीकत में हम आखिरी पायदान पर खड़े हैं। ऐसे शिक्षण संस्थान किस तरह के भावी नागरिक देंगे,जो उन्हें खूनी खेल सिखाते हों। राजनीति को शिक्षा से अलग करना होगा वरना शिक्षा के ये मंदिर खूनी खेल के अखाड़ा बनते जाएंगे, जिनमें जंग तो होगी, शिक्षा नहीं।

 

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