संस्कृत में ‘ इरावती ’ नाम से जानी जाती ‘ रावी ’ नदी

इस नदी का प्राचीन नाम ‘इरावती’ है, जिसे स्थानीय बोली में ‘रौती’ भी कहते हैं। रावी नदी की मूल धारा बड़ा भंगाल से निकल कर अपनी ही कई छोटी- बड़ी जल धाराओं को समेटती हुई लोअर चुराह के चौहड़ा नामक स्थान पर विशाल नदी का रूप धारण करती है…

हिमाचल की नदियां

रावी नदी – डलहौजी की पश्चिमोत्तरी चोटियों से प्रवाहित होने वाले पानी को दो खड्डें सृजित करती हैं। इनके नाम हैं ‘चनेड़ खड्ड’ ‘सरू खड्ड’। ये दोनों क्रमशः भगोत तथा उदयपुर गांव के समीप विलय होती हैं। डलहौजी की उत्तरी पहाडि़यों से प्रवाहित होने वाली जलधारा को ‘बाथरी खड्ड’ कहतें हैं, जो शेरपुर गांव के समीप रावी नदी में मिलती है। बकलोह की पश्चिमोत्तरी पहाडि़यों से प्रवाहित हाने वाले सभी स्रोत ‘नौणी खड्ड’ का सृजन करते हैं। यह खड्ड मेल गांव के समीप रावी में समाहित होती हैं। रावी नदी की प्रमुख सहायक खड्ड स्यूल है। चुराह घाटी के समस्त जल स्रोतों से स्यूल खड्ड का सृजन होता है। भारत वर्ष में केवल दो ही ऐसी नदियां हैं जो पश्चिम दिशा में प्रवाहित होती हैं, एक पावन जल वाहिनी गंगा तथा दूसरी स्यूल नदी। इन दोनों नदियों के जल में कई-कई सालों तक सड़न पैदा नहीं होती है। रावी नदी स्यूल खड्ड के बिना अपूर्ण एवं अधूरी रह जाती यदि प्रकृति ने इनका संगम न कराया होता। अप्पर चुराह के पश्चिम पंचतारा की जोतों से बहने वाली सभी जल धाराएं सम्मिलित होकर परगना बैरा की ओर प्रवाहित होती हैं और यह जलधारा ‘बैरा खड्ड’ के नाम से जानी जाती हैं। पास की सभी पर्वत श्रेणियों का जल ‘सतरूंडी खड्ड’ का सृजन करता है। यह खड्ड भी तरेला नामक स्थान के समीप ‘बैरा खड्ड’ में मिल जाती है। मैहलवार धार की सिगड़ा नामक चोटियों से प्रवाहित होने वाली सभी जलधाराएं ‘मुलवास खड्ड’ कहलाती हैं। यह खड्ड भी लोअर तरेला नामक स्थान पर इसी जलधारा में सम्मिलित हो जाती है। कालावन और रानीकोट की पर्वत श्रेणियों से प्रवाहित होने वाली जलधाराएं ‘खरथ खड्ड’ के नाम से जानी जाती हैं। ‘खरथ खड्ड’ का भी ‘बैरा खड्ड’ में विलय हो जाता है। परगना बैरा के पूर्व में विद्यमान ‘गड़ासरू महादेव डल’ की मूल धारा आसपास के सभी पर्वत शिखरों का जल अपने में सम्मिलित करती हुई ‘शिलाड खड्ड’ के नाम से जानी जाती है। इस खड्ड के पूर्वोत्तर में स्थित चैहणी जो की सभी जलधाराएं ‘चैहणी खड्ड’ का सृजन करती है। चैहणी जोत से सटे हुई अड़ाउ जोत की सभी जल धाराएं ‘ऐथण खड्ड’ का निर्माण करती हैं। चैहणी और ऐथण खड्ड हैल गांव के समीप आपस में मिल जाती हैं तथा गांव से कुछ दूरी पर जलधारा ‘शिलाउ खड्ड’ में विलीन हो जाती हैं। उसके आगे इस विशाल जलधारा को ‘बलसियो खड्ड’ के नाम से जाना जाता है। इस खड्ड में ‘सुपरांजला खड्ड’ तथा ‘गुलेई खड्ड’ इत्यादि भी मिलती

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