सुहाग पिटारी से वधू का शृंगार करती हैं महिलाएं

सुहाग पिटारी में लाए गए वस्त्र- जेवरों आदि से महिलाएं वधू का शृंगार करती हैं। फिर कन्या पिता स्वेच्छा से वर और कन्या को दी जाने वाली शैया पर उन्हें बिठाकर शैया दान करता है, जिसे पहाड़ी में मकलावा, हिंदी में डोली भी कहते हैं…

रीति-रिवाज व संस्कार

इससे पूर्व कन्यादान संकल्प के समय वर पक्ष का लाया गया तेल आदि कन्या को लगाया जाता है। पाठा मुंदी (बायीं तर्जनी में पहनाई जाने वाली चांदी की छाप) मंगल सूत्र आदि लगाया जाता है। चार परिक्रमा फिर होती है अंतिम में कन्या पीछे वर आगे हो जाता है। इस अंतिम परिक्रमा में ब्राह्मण वर पुस्तक हाथ  में लेकर, क्षत्रिय तलवार और वैश्य गरी गोला के साथ करते हैं। इसमें कन्या की बहनें वर का रास्ता रोकती हैं, जिसे अंगूठा दबाना कहते हैं। हास-परिहास के बाद 51 या 101 रुपए लेकर वर का अंगूठा छोड़ देती हैं। इसके बाद वर-वधू सात कदम साथ-साथ चलकर प्रतिज्ञा करते हैं कि 1-अन्न प्राप्ति, 2-ऊर्जा प्राप्ति, 3-धन प्राप्ति, 4-सांसारिक सुख, 5-पशु सुख, 6-ऋतुओं की अनुकूलता, 7-सखी भाव हमें साथ-साथ प्राप्त हों। इसके बाद वर वधू की मांग में सिंदूर भरने की प्रथा है। फिर वधू के हाथों से वर के पैर धुलाना परस्पर दही गुड़ खिलाने की प्रथा है। इसके बाद विद्वान आचार्य वर-वधू उपस्थित समुदाय को विवाह संस्कार की परंपराओं से अवगत कराते हुए नवयुगल को सुखमय जीवन का आशीर्वाद देते हैं।

डोली विदाई (मकलावा) : सुहाग पिटारी में लाए गए वस्त्र जेवरों आदि से महिलाएं वधू का शृंगार करती हैं। फिर कन्या पिता स्वेच्छा से वर और कन्या को देने वाली शैया पर उन्हें बिठाकर शैया दान करता है, जिसे पहाड़ी में मकलावा, हिंदी में डोली भी कहते हैं। दुल्हन को डोली में बिठाकर डोली को दुल्हन के भाई गांव की सीमा पार तक स्वयं उठाकर ले जाते हैं। अब डोली की जगह कार या फिर घोड़ा गाड़ी ने ले ली है।

वधू प्रवेश (वासनी) : बारात दुल्हन को लेकर घर पहुंचने पर पुरोहित द्वारा शुभ समय में वधु प्रवेश करवाया जाता है। इस अवसर पर नव वधू से परिवार के बड़े लोगों को चरण स्पर्श करवाया जाता है। नवदुल्हन के साथ जब मिलनी करते हैं तो उसको यथाशक्ति उपहार या राशि देते हैं। चरणस्पर्श जिसे स्थानीय शब्दों में ढाल, माथा टेकणा कहते हैं, उसकी भी राशि दी जाती है। वासनी पर सेहरा खोल कर देवालय में रखने की प्रथा है। कहीं- कहीं पर जुआ खिलाने की प्रथा है। एक बड़ी परात में दुग्ध या गुलाली मिश्रित जल डालकर लाड़े की बहनें एक चांदी का सिक्का  और कुछ अन्य सिक्के डालती हैं। वर और वधू में जो अधिक बार चांदी का सिक्का निकालता है, वह विजयी होता है या दोनों को साथ बिठाकर एक साथ शक्कर खाने को दी जाती है। जो पहले शक्कर खाकर खड़ा होकर बैठ जाए, वह जीत जाता है। इस अवसर पर वर और वधू शांत के दिन बांधे गए रक्षा कंगण एक दूसरे के एक-एक हाथ से खोलते हैं, जिन्हें पुरोहित बांधते वक्त चतुराई से उलझा देते हैं।

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