औपचारिक पर्यावरण दिवस

(शगुन हंस, योल)

हर साल 5 जून को हम विश्व पर्यावरण दिवस के रूप में मनाते हैं यानी यह सिर्फ औपचारिकता भर ही होता है। इस दिन एक जनसभा कर ली, एक पौधा लगा दिया या ज्यादा से ज्यादा रैली निकाल दी और पूरे साल भर के लिए पर्यावरण से छुट्टी। ऐसे एक दिन के अभियान से पर्यावरण बचने वाला नहीं है। इसके लिए सब को संकल्प लेना होगा। क्या हम उत्तराखंड की आपदा भूल गए हैं। यह भी प्रकृति से छेड़छाड़ की पराकाष्ठा थी। प्रकृति ने हमारे लिए ही सब बनाया है। पर हम अपनी सुविधाओं के लिए उससे छेड़छाड़ करते हैं। प्रकृति में सब कुछ हमारे अनुकूल है, पर जब हम खुद प्रकृति से छेड़छाड़ कर सब कुछ अपने अनुकूल बनाने की कोशिश करते हैं, तभी ऐसी आपदाएं आती हैं। यानी फिर प्रकृति बदला लेने पर उतारू हो जाती है। बादल फटना, बाढ़ आना ये भी प्रकृति के संकेत हैं कि मनुष्य उससे छेड़छाड़ कर रहा है। जंगलों को काट कर कंकरीट के  जंगल उगाए जा रहे हैं जो हमें रहने के लिए तो आसरा देंगे पर बिना पर्यावरण के हम रहेंगे कब तक, यह तो कोई सोच ही नहीं रहा। प्रकृति का सहयोग करोेगे, तो बेशुमार मिलेगा और यदि प्रकृति से छेड़छाड़ करोगे तो सिवाय मुसीबत के कुछ भी नहीं मिलेगा।

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