कृषि हेल्पलाइन

कीटनाशी छिड़काव के दस दिन बाद तोड़ें फल

ग्रीष्मकालीन सब्जियों में भिंडी किसानों की आय का मुख्स स्रोत है, लेकिन कुछ नाशी कीट एवं व्याधियां किसानों की आय में लगभग 20 प्रतिशत  कटौती  करती हैं। विभिन्न अवस्थाओं में लगने वाली नाशी कीटों के बारे में यदि किसान भाइयों तथा बहनों को जानकारी हो तो वे समय पर उचित प्रबंधन तकनीक अपनाकर इन नाशी कीटों के नुकसान से काफी हद तक बच सकते हैं। उनकी जानकारी हेतु भिंडी के मुख्य नाशी कीटों की पहचान, लक्षण एवं प्रबंधन का विवरण दिया जा रहा है।

जैसिड कीट मुख्य रूप से पत्तियों से रस चूसकर पौधों को नुकसान पहुंचाते हैं। यह हल्के हरे रंग को छोटे-छोटे कीट हैं, जो पंक्तियों की निचली सतह पर नजर आते हैं। यह कीट पत्तियों पर टेढे चलते हैं तथा इसके व्यसक छूने पर उछल कर भाग जाते हैं। शिशु एवं व्यस्क कीट पत्तियों के नीचे की सतह से रस चूसते हैं, जिसके कारण पत्तियों की ऊपरी सतह पर छोटे-छोटे हल्के पीले रंगे के धब्बे दिखाई देते हैं तथा पत्ते ऊपर की ओर मुड़कर पीले होकर गिर जाते हैं।

इस कीट के प्रबंधन हेतु डाइमैचाएट 30 ईसी (दो मिलीलीटर पानी)  का छिड़काव करें। यदि आवश्यकता पड़े तो 20 दिन बाद पुनः छिड़काव करें। ध्यान रहे कि फल छिड़काव के कम से कम 10 दिन बाद ही तोड़ें।

फल एवं शाखा छेदक कीट शाखाओं एवं फलों को प्रभावित करता है। इस कीट का व्यस्क एक पतंगा होता है, जिसके ऊपर वाले पंख के मध्य एक हरे रंग की लाइन नजर आती है। कीट की चितकबरी सुंडियां कलियों के पास के स्थान पर पौधे की टहनियों में छिद्र कर जाती हैं। प्रभावित टहनियों में गत्ते नीचे की ओर झुक जाते हैं। बाद में यह सुंडी फल के अंदर प्रवेश कर फल को हानि पहुंचाती हैं। विकसित हो रहा फल विकृत हो जाता है। यदि पौधे छोटे हो तों शाखाएं सूख जाती हैं तथा पौधा मर भी सकता है।

प्रभावित शाखाओं एवं फलों को तोड़कर गड्ढे में दबा दें। लक्षण नजर आने पर डैल्टामैथरिन 2.8 प्रतिशत ईसी का 15 मिलीलीटर, 15 लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें। छिड़काव करने से पूर्ण फल तोड़ लें।

कभी-कभी सफेद मक्खी जो कि बहुत सी छोटी हल्के हरे रंग की होती है तथा उसके पंखों पर सफेद मोमी परत जमी होती है, पत्तियों पर आक्रमण कर देती हैं। मादा मक्खी पत्तियों की निचली सतह पर अंडे देती हैं तथा उनसे कुछ दिन बाद शिशु निकलकर रस चूसना शुरू कर देते हैं। फलस्वरूप पत्तियां पीली पड़ जाती हैं। इसके अतिरिक्त यह कीट एक मधु स्राव भी छोड़ता है। जिस पर बाद में काली फफूंद जम जाती है। पौधा अपना भोजन नहीं बना पाता तथा कमजोर पड़ जाता है। इस कीट के व्यस्क हल्के रंग एवं पीले रंग की ओर आकर्षित होते हैं।

जैसे ही आक्रमण नजर आए तो अपने खेतों में पीले रंग के आकर्षक चिपचिपे पाश (यलो ट्रैप्स) लगाएं तो 10-15 एकड़ की दर से लगाए जा सकते हैं। इसमें मक्खियां आकर्षित कर चिपक जाएंगी तथा इस प्रकार खेतों में मक्खियों की संख्या कम हो जाएगी। इसके अतिरिक्त इमिडाकलोपरिड 17.8 प्रतिशत एसएल का चार मिलीलीटर/10 लीटर की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें। ध्यान रहे कि छिड़काव पत्तियों की निचली सतर पर अच्छी तरह से हो।

माइट जो एक सूक्ष्म जीव है, जिसकी आठ टांगें होती हैं। इनका रंग हरा-पीला होता है तथा इनके शरीद पर दो गहरे धब्बे नजर आते हैं। लैंस की सहायता से इसे खेतों में देखा जा सकता है। शुष्क एवं गर्म मौसम में इसका अधिक आक्रमण होता है। इसके शिशु एवं व्यस्क पत्तियों से रस चूसते हैं, जिससे पत्तियां हल्के हरे, पीले  तथा भूरे रंग की हो जाती हैं। पौधा कमजोर पड़ जाता है तथा पैदावार एवं गुणवता प्रभावित हो जाती है। इस जीव के नियंत्रण हेतु डाइकोफॉल 18.5 प्रतिशत ईसी 10 मिलीलीटर/10 लीटर पानी या फैनाजाक्विन 10 प्रतिशत ईसी का 10 मिलीलीटर पानी का घोल बनाकर छिड़काव करें। इसके अतिरिक्त किसान अपने नजदीकी कृषि किसान केंद्र एवं कृषि विभाग कार्यालय से संपर्क कर अपनी समस्या के समाधान के बारे में जान सकते हैं।

गगनदीप सिंह, एवं डा. दिवेंद्र गुप्ता

सौजन्यः डा. राकेश गुप्ता, छात्र कल्याण अधिकारी, डा. यशवंत सिंह परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, सोलन

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