भारतवंशियों के नाम मोदी

एक भारत अमरीका में भी है और मूल भारत तो हम सभी हैं। अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड टं्रप हमारे प्रधानमंत्री मोदी को ‘सच्चा दोस्त’ करार दें, वाशिंगटन में ही सर्जिकल स्ट्राइक और आतंकवाद का मुद्दा उठे और पीएम मोदी को ‘व्हाइट हाउस में रात्रि भोज करने वाले प्रथम’ विदेशी शासनाध्यक्ष का सम्मान मिले। ऐसे में अमरीकी भारत तालियां बजाता है, लेकिन दिल्ली में प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस का बयान आता है कि विपक्ष को गाली देना मोदी सरकार की विदेश नीति है। क्या विडंबनापूर्ण विरोधाभास है? प्रधानमंत्री मोदी को कुछ घंटों बाद राष्ट्रपति ट्रंप से मुलाकात करनी थी। यदि कांग्रेस का बयान ट्रंप तक पहुंचता है, तो वह क्या सोचेंगे? बहरहाल हम संपादकीय को दो भागों में विभक्त कर अपना विश्लेषण करेंगे। पहला भाग अमरीकी भारतवंशियों का है। मोदी समूचे भारत, जिसमें  कांग्रेस भी शामिल है, के प्रधानमंत्री हैं और वह राष्ट्रपति ट्रंप के साथ पहले द्विपक्षीय संवाद के लिए अमरीका में हैं। लिहाजा उनके लिए जुमलेबाज, ड्रामेबाज, नौटंकी जैसे शब्दों का इस्तेमाल करना राष्ट्र भारत का ही अपमान है। बेशक मोदी-ट्रंप दोनों ही इस्लामी आतंकवाद के खिलाफ हैं। पाक की सैन्य और अन्य आर्थिक मदद में कटौती करने का बिल अमरीकी कांग्रेस में विचाराधीन है। यदि पीएम मोदी अमरीकी भारत के सामने सर्जिकल स्ट्राइक का प्रसंग उठाते हैं और चीन, रूस सरीखे देश भी उस पर सवाल नहीं कर सकते, तो प्रधानमंत्री मोदी की व्याख्या उचित है कि अब विश्व ने भी आतंकवाद को समझ लिया है, क्योंकि आतंकवाद बड़े देशों तक भी पहुंचा है और उन देशों को छलनी किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संबोधन में भारत के धैर्य की भी चर्चा की और साफ संकेत दिए कि यदि जरूरत पड़ी तो एक बार फिर सख्त कार्रवाई की जा सकती है। यह सर्जिकल स्ट्राइक का भारतीय सेना का सामर्थ्य भी हो सकता है। अमरीकी भारतीयों ने तालियों से प्रधानमंत्री मोदी के संबोधन का सम्मान किया। एक सवाल अकसर चुभता है कि इससे पहले भारतीय प्रधानमंत्री विदेशों में बसे भारतीयों को संबोेधित क्यों नहीं करते थे? पीएम मोदी ने बेदाग सरकार से लेकर उज्ज्वला गैस योजना, विदेश मंत्रालय का ‘गरीब’ चेहरा और सर्जिकल स्ट्राइक तक कई मुद्दों को रखते हुए अमरीकी भारत का आह्वान किया कि मिट्टी का कर्ज चुकाना है, तो उनके लिए भी भारत में निवेश का न्योता है। बेशक अमरीका प्रवास के दौरान पीएम मोदी के लिए निवेश, व्यापार, परमाणु करार, ऊर्जा, रक्षा सहयोग आदि बेहद महत्त्वपूर्ण क्षेत्र हैं, लेकिन पाक परस्त आतंकवाद हम पर हमले करता रहेगा और कश्मीर जलता रहेगा, तो तमाम रणनीतिक भागीदारी फिजूल है। लिहाजा सर्जिकल स्ट्राइक या किसी अन्य संभावित आक्रमण को लेकर अमरीका को विश्वास में रखना पीएम मोदी की ही कूटनीति है। राष्ट्रपति ट्रंप से मुलाकात से पहले अमरीकी विदेश विभाग ने जिस तरह हिजबुल मुजाहिदीन के सरगना सैयद सलाहुदीन को ‘वैश्विक आतंकवादी’ घोषित किया है, वह बुनियादी तौर पर भारत की ही कूटनीतिक जीत है। बेशक वाशिंगटन में मोदी-ट्रंप की मुलाकात और संकेतों से पाकिस्तान के बजीर-ए-आजम नवाज शरीफ जरूर तनाव और सदमे में होंगे। अमरीका ने 30 करोड़ डालर की आर्थिक मदद पर तो कैंची पहले ही चला दी है। यदि एशिया में भारत और अमरीका साझा तौर पर सक्रिय होने का फैसला करते हैं, तो उससे चीन और पाकिस्तान के मंसूबों पर पहरेदारी बिठाई जा सकेगी। बहरहाल अमरीका की बड़ी कंपनियों के सीईओ से भी पीएम मोदी की मुलाकात के संकेत सुखद आए हैं। अमेजन, गूगल, माइक्रोसॉफ्ट आदि कंपनियों ने अरबों डालर की पूंजी भारत में निवेश करने की घोषणाएं की हैं। वाकई भारत अमरीका के संबंध विवादों से परे हैं। दोनों रणनीतिक, सामरिक साझेदार तो हैं ही, लेकिन व्यापार और कूटनीति की भागीदारी भी बढ़े तो दुनिया के देश इस संतुलन से खौफ खाने लगेंगे।

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