राष्ट्रपति पर असहमति की जिद

राष्ट्रपति भवन और सत्तारूढ़ एनडीए के उम्मीदवार रामनाथ कोविंद ने कमोबेश विपक्षी एकता की संभावनाओं को बिखेर कर रख दिया है। विपक्षी खेमे में नीतीश कुमार, नवीन पटनायक, चंद्रशेखर, तमिलनाडु के नेता आदि परंपरागत रूप से और वैचारिक आधार पर प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा के विरोधी रहे हैं, लेकिन राष्ट्रपति पर आम सहमति के भाव के मद्देनजर उनके दलों से एनडीए उम्मीदवार कोविंद को समर्थन देने की खबरें आ रही हैं। बीजू जनता दल (ओडिशा), तेलगांना राष्ट्र समिति (तेलगांना), वाईएसआर कांग्रेस (आंध्र) और अन्नाद्रमुक के दोनों धड़ों ने कोविंद के समर्थन का ऐलान किया है। जनता दल यू ने भी आज गोविंद को समर्थन देने का फैसला किया है, इस तरह राष्ट्रपति चुनाव निर्बाध, निष्पक्ष और विविधहीन होगा। किसी भी सांसद और विधायक पर किसी भी पक्ष में वोट देने का दबाव नहीं है, लिहाजा कुछ भी हो सकता है। बिहार के मुख्यमंत्री एवं जद-यू के अध्यक्ष नीतीश कुमार एनडीए उम्मीदवार कोविंद के राष्ट्रपति भवन तक जाने पर प्रसन्नता जाहिर कर चुके हैं। यह संकेत पर्याप्त है। लिहाजा 2019 के आम चुनाव से पहले  (महागठबंधन) सरीखी विपक्षी एकता के आसार अभी से धूमिल कर रहे हैं। सिर्फ कांग्रेस, वामपंथी दलों, तृणमूल कांग्रेस, एमआईएम, राजद आदि कट्टर मोदी और भाजपा विरोधी दलों की जिद है कि राष्ट्रपति पर सर्वसम्मति न बनने दी जाए। यह मुख्यधारा को राजनीति के खिलाफ कवायद है और संकेतात्मक चुनावी लड़ाई भी है। गुरुवार 22 जून को यह भी स्पष्ट हो जाएगा कि कांग्रेस नेतृत्व के यूपीए का उम्मीदवार कौन होगा-मीरा कुमार, सुशील कुमार शिंदे या प्रख्यात कृषि विज्ञानी एमएस स्वामीनाथन? कृषि विज्ञानी का नाम शिवसेना ने भी आगे बढ़ाया था। इसी आधार पर कांग्रेस ने खुशफेहमी  शुरू कर दी थी कि स्वामीनाथन की उम्मीदवारी पर शिवसेना एनडीए से टूटकर वोट कर सकती है, लेकिन शिवसेना के भी कोविंद के पक्ष में फैसले व कांग्रेस और यूपीए के सपनों पर पानी फेर दिया। भारतीय राजनीति के महत्त्पूर्ण दलों के समर्थन की घोषणा के बाद ऐसे आकलन स्पष्ट हैं कि कोविंद के पक्ष में 65 फीसदी से ज्यादा वोट आ सकते हैं। निर्वाचक मंडल के कुल वोट 10.98 लाख से अधिक हैं। कुछ सर्वे तो ऐसे सामने आए हैं कि जिनका दावा है कि एनडीए उम्मीदवार को सात-आठ लाख से ज्यादा वोट मिल सकते हैं। ये संकेत विपक्षी सियासत की कुछ नाकामी है। राष्ट्रपति किसी दल या पक्ष का नहीं होता। कोविंद का नाम तय करने के बाद खुद प्रधानमंत्री मोदी ने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को फोन कर बताया था तथा सहमति के लिए यह पर्याप्त आधार नहीं था। वोट मोदी और भाजपा को नहीं दिए जाने हैं।  वे देश का राष्ट्रपति चुनेंगे, जो संविधान, संसद और सत्ता का सर्वोच्च प्रहरी होता है। उसके लिए सहमति न जताना कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों की जिद्द के अलावा कुछ भी नहीं है। इस जिद से हासिल भी ‘शून्य’ होगा। बहरहाल रामनाथ कोविंद का 15वां राष्ट्रपति चुना जाना लगभग तय है। कांग्रेस और उसका खेमा ‘दलित विरोधी’ करार दिया जाएगा या नहीं, यह औसत राजनीति का सवाल है। हमारी चिंता और सरोकार यह है कि कमोबेश राष्ट्रपति का चुनाव सर्वसम्मति से होना चाहिए। जिद्दी विरोधक के लिए अब भी बदलने का मौका है।

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