शहादत का त्रुटिपूर्ण समाजशास्त्र

मोहिंद्र सिंह चौहान

लेखक,हमीरपुर से हैं

मध्यम एवं निम्न वर्ग के बच्चे कड़ा परिश्रम करते हुए विकट परिस्थितियों का सामना करके पढ़-लिखकर सैन्य बलों, अर्द्धसैनिक बलों, पुलिस सेवा, अन्य सशस्त्र सेवाओं एवं वन सेवाओं आदि में जाते हैं। उनको ऐसी जगहों पर तैनाती मिलती है, जहां पर उनकी सुरक्षा की कोई मूलभूत गारंटी नहीं होती…

कुछ दिन पहले मेरे एक चचेरे भाई अपने सैन्य अधिकारी भाई व उनके माता-पिता राजस्थान से भ्रमण कर लौट कर आए, तो मैंने उनसे पूछा कि आप का राजस्थान का भ्रमण कैसा रहा, बहुत ज्ञानवर्द्धक रहा होगा। राजपूती शान-ओ-शौकत का इतिहास समेटे इन ऐतिहासिक स्मारकों को देख कर गर्व महसूस हुआ होगा, वैसे मुझे इतिहास विषय में रुचि है तो मैंने कुछ ऐतिहासिक वैभव के उत्तर की ही अपेक्षा की थी, लेकिन मैं अपने भाई की बात सुनकर कुछ सोचने पर मजबूर हुआ। उन्होंने कहा कि भाई ऐतिहासिक स्मारक देखकर गर्व तो महसूस होता है या नहीं, यह तो अलग बात है, लेकिन हमने वहां पर रजवाड़ों की शान-ओ-शौकत के अतिरिक्त आम जनता से जुड़े कोई भी स्मारक या ऐतिहासिक महत्त्व की चीजें नहीं देखीं। मसलन आम आदमी के रहन-सहन उनकी सुख-सुविधाओं से जुड़े कोई स्मारक इत्यादि। शासक कोई भी रहे हों, हिंदू, मुस्लिम या अंग्रेज आम जनता गुलाम ही रही, उन सभी ने आम जनता का खून ही निचोड़ा है, वह सदियों से होता आया है, हो रहा है, होता रहेगा। आज चाहे देश की सीमा सुरक्षा की बात हो, देश की आतंरिक सुरक्षा की बात हो, इसके लिए मध्यम एवं निम्न वर्ग के बच्चों को ही अपना बलिदान देना पड़ता है। उच्च वर्ग के लोग इन कार्यों में कुर्बान नहीं होते, उनको तो ऐसे पदों पर मुफ्त में ही बिठा दिया जाता है, मानों कि वे उस सब की ट्रेनिंग मां के पेट से लेकर पैदा हुए हों।

नेताओं, अभिनेताओं के बच्चे जन्मजात ही सेलिब्रिटी होते हैं, लेकिन मध्यम एवं निम्न वर्ग के बच्चे कड़ा परिश्रम करते हुए विकट परिस्थितियों का सामना करके पढ़-लिखकर सैन्य बलों, अर्द्धसैनिक बलों, पुलिस सेवा, अन्य सशस्त्र सेवाओं एवं वन सेवाओं आदि में जाते हैं। उनको ऐसी जगहों पर तैनाती मिलती है, जहां पर उनकी सुरक्षा की कोई मूलभूत गारंटी नहीं होती। सैन्य बलों या कई सेवाओं में तैनाती सिर्फ बाघ के आगे बकरी बांधने वाली बात होती है। इस बात का प्रमाण हमारे सुरक्षा बलों के साथ जम्मू-कश्मीर में लोगों के व्यवहार से मिलता है। कैसे आम जनता हमारे सुरक्षा बलों का अपमान करती है।

मानों हमारे सुरक्षा बलों का कोई मान-सम्मान नहीं है। आतंकवाद से लेकर सामाजिक सुरक्षा में सिर्फ मध्यम व निर्धन तबके के बच्चे ही अपने प्राणों की आहुति डालते हैं। चाहे जम्मू-कश्मीर में लेफ्टिनेंट फैयाज की आतंकवादियों द्वारा हत्या हो, अनंतनाग जिला में फिरोज अहमद डार नौजवान एसएचओ व उनकी जांबाज टीम की शहादत हो या फिर हिमाचल प्रदेश के मंडी जिला के करसोग तहसील की कतांडा वन बीट के फोरेस्ट गार्ड होशियार सिंह की रहस्यमय मृत्यु की घटना हो। इस प्रकार की घटनाओं में निर्धन घरों के बच्चे ही कुर्बान होते हैं, जो कठिन परिस्थितियों का सामना करते हुए सरकारी सेवाओं तक पहुंचते हैं, लेकिन इनकी सुरक्षा भगवान भरोसे ही होती है, अगर सुरक्षा की पुख्ता व्यवस्था हो, तो इस प्रकार के बलिदान रोके जा सकते हैं। हमारे इन बच्चों पर अकसर मानसिक दबाव रहा है, यह तो शहीद ही जानते होंगे। किंतु देश के भविष्य के लिए इस प्रकार की व्यवस्था कोई शुभ संकेत नहीं है। इन बच्चों पर अपने करियर को संवारने के अतिरिक्त अपने परिवारों के भरण-पोषण की भी जिम्मेदारी होती है। सरकारों को चाहिए कि इनकी सुरक्षा के पुख्ता प्रबंध हों। हिमाचल प्रदेश के वन जैसे विभागों में भारी-भरकम अधिकारियों की फौज ज्यादा है, लेकिन वन बीटों में काम करने वाले फोरेस्ट गार्डों की संख्या कम। हमने स्वयं देखा है, इतने बड़े क्षेत्रों की रखवाली करना उनके लिए बहुत मुश्किल होता है। वनों में जब आग लगती है, तो कैसे ये कर्मचारी परिस्थितियों से जूझते हैं, यह भी हमने देखा है। दूरभाष पर जानकारियां मांगते लोग कई बार गलत जानकारी भी देते हैं। कड़ी सर्दियों में भी वनों की रखवाली करना आसान कार्य नहीं है। उच्च स्तर पर अधिकारियों को हर सुविधा प्रदान की जाती है, लेकिन निचले स्तर पर सुविधाओं का अभाव रहता है। निम्न स्तर के कर्मचारियों पर काम का अधिक बोझ रहता है। ये कर्मचारी अकसर उन परिवारों से होते हैं, जो परिवार अपने बच्चों के बेहतर भविष्य की कामना करते हैं, जहां ये बच्चे कड़ा परिश्रम करके इन पदों पर पहुंचते हैं। दूसरी तरफ कम आयु होने की वजह से इनके पास अनुभव की कमी होती है और कुछ बच्चे या कर्मचारी वन माफिया व अफसरों की भ्रष्ट प्रणाली के शिकार हो जाते हैं। ये कर्मचारी इसी वजह से कई प्रकार की दुर्घटना का शिकार हो जाते हैं। अतः सरकार ऐसे जांबाज कर्मचारियों की सुरक्षा का प्रबंध करे, ताकि लोग इनकी तरफ आंख उठाकर न देख सकें। उन पर अपनी सेवाएं देते समय अन्य किसी प्रकार के मानसिक तनाव की परिस्थिति नहीं बननी चाहिएं। अन्यथा लोगों का इन सेवाओं/विभागों से विश्वास उठ जाएगा और लोग इन सेवाओं में अपने बच्चों को भेजने से गुरेज करेंगे, जो समाज के लिए शुभ संकेत नहीं है। अकसर गाज उन्हीं कर्मचारियों पर गिरती है, जो अपना कार्य पूर्ण कर्त्तव्यनिष्ठा से करते हैं, ऊपरी तबके मात्र कागजी कार्रवारियों तक सीमित रहते हैं और हमारे लखते जिगर कुर्बानियां देने पर मजबूर हो जाते हैं।

हिमाचली लेखकों के लिए

लेखकों से आग्रह है कि इस स्तंभ के लिए सीमित आकार के लेख अपने परिचय तथा चित्र सहित भेजें। हिमाचल से संबंधित उन्हीं विषयों पर गौर होगा, जो तथ्यपुष्ट, अनुसंधान व अनुभव के आधार पर लिखे गए होंगे।

-संपादक

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