हैं कितने मूर्ख लोग अपने कश्मीर को उजाड़ रहे हैं,
कुछ सिक्कों के लालच में अपनी तकदीर को फाड़ रहे हैं।
लगता है सभी अंधे हो गए हैं पराये धन से स्कूल जला रहे हैं,
ताकि यहां का कोई बच्चा पढ़ न सके स्वर्ग को नरक बना रहे हैं।
जो लोग दूसरों को उजाड़ना चाहते हैं खुद उजड़ जाते हैं
दूसरों को निशाना बना कर स्वयं ही मर जाते हैं।
जैसे एक पंतगा रोशनी की चाह में दीपक की तपस से मर जाता है,
दीपक तो जलता रहता है अपने खुद के लिए अंधेरा कर जाता है।
जो सेना उनकी रक्षक है पत्थर मार कर जाने को कह रहे हैं
और फिर जब बाढ़ आती है तो बिना रक्षा पानी में बह रहे हैं।
घमंड धन का हो या कश्मीर का फूलता बाग तबाह हो जाता है,
घमंड चाहे रावण का हो खुद जलकर स्वाह हो जाता है।
जिसकी सुंदरता निहारने संसार आता था, कब्र गाह बनता जाता है,
भगवान के सुंदर उद्यान देखते हैं कौन बना पाता है।
कुरुक्षेत्र बना दिया उसे अपना बनाने को
अपनी धरती के दुश्मन बन गए किसने कहा स्कूल जलाने को
कसूर लालच का है जो करता है उसका फल जरूर मिलता है,
एक बार सुंदरता खत्म कर दी सदियों तक फूल नहीं खिलता है।
दुश्मन के पैसे का यह कैसा रोजगार अपनों को ही गंवाने का,
लगता है आ गया है वक्त कश्मीर का भाग्य रूलाने का।
कश्मीर उजाड़ना आसान है, पर मुश्किल है इसे फिर बनाना
वे सुंदरता के काबिल नहीं हैं, जिन्होंने शुरू किया घर जलाना
वे अब नहीं आएंगे, जो सुंदर सपने देखते कश्मीर के,
वे खुद ही मर जाते हैं जो गड्ढे खोदते हैं अपनी तकदीर को।
मेहर चंद दर्दी जयंती विहार, कांगड़ा
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