आत्मा का अनुभव

स्वामी विवेकानंद

गतांक से आगे…

यदि वह मुझे पीटता है, तो मैं कहूंगा कि मैं पिटा हूं। यदि मैं शरीर नहीं हूं, तो ऐसा क्यों कहता हूं? यदि मैं कहूं मैं आत्मा हूं, तो इससे कोई अंतर नहीं पड़ता, मैं इस इस समय शरीर हूं। मैंने अपने को जड़ पदार्थ में परिवर्तित कर लिया है, इसीलिए मुझे शरीर को त्यागना है, जिससे मैं उसमें लौट सकूं, जो मैं वास्तव में हूं। मैं आत्मा हूं,  जिसे कोई शस्त्र भेद नहीं सकता, कोई तलवार काट नहीं सकती, कोई आग जला नहीं सकती, कोई हवा सुखा नहीं सकती। अजन्मा और अविरचित, अनादि और अनंत, अमर, नित्य और सर्वव्यापी, यह है वह, जो मैं हूं, और सब दुःख आता है, केवल इसलिए कि मैं इस मिट्टी के छोटे से टुकड़े को समझता हूं कि यह मैं हूं। मैंने अपने को जड़ पदार्थ से अभिन्न समझ लिया है और उसके सब फल भोग रहा हूं। व्यावहारिक धर्म यह कि मैं अपने को अपनी आत्मा के रूप में पहचान। इस पहचान में होने वाली भूल को समाप्त करो! तुम इसमें कितने आगे बढ़े हो? तुम दो हजार अस्पताल ही बनवा सको, पचास हजार भले ही बनवा सको, पर उससे क्या, यदि तुमने यह अनुभूति नहीं प्राप्त की है कि तुम आत्मा हो? तुम कुत्ते की मौत मरते हो, उसी भावना से, जैसे कुत्ता मरता है। कुत्ता चीखता है और रोता है, इसलिए कि वह समझता है कि वह जड़ तत्त्व मात्र है और विलीन होने जा रहा है। मृत्यु है, तुम जानते हो, अटल मृत्यु, पानी में, हवा में, महल में, कैदखाने में, मृत्यु सर्वत्र है। तुमको निर्भय क्या बनाता है? जब तुम यह अनुभव कर लेते हो कि तुम हो वह अनंत, आत्मा-अमर और अजन्मा। उसे कोई आग जला नहीं सकती, कोई आयद्ध मार नहीं सकता, कोई विषय हानि नहीं पहुंचा सकता। यह कोरा सिद्धांत नहीं है। पुस्तक-पाठ नहीं (तोतारटंत नहीं)। मेरे वृद्ध गुरु कहा करते थे ‘तोते को सदा राम, राम कहना सिखाना बहुत अच्छा है, पर बिल्ली को आने दो और उसकी गर्दन दबोचने दो, तब वह उसके विषय में सब भूल जाता है।’ तुम सदा प्रार्थना कर सकते हो, संसार के सब धर्मशास्त्र पढ़ सकते हो और जितने देवता हैं, सबकी पूजा कर सकते हो, पर जब तक तुम आत्मा का अनुभव नहीं करते, मुक्ति नहीं है। बात नहीं, सिद्धांतीकरण नहीं, तर्क नहीं, वरन अनुभव। मैं इसे व्यावहारिक धर्म कहता हूं।  आत्मा के विषय में यह सत्य पहले सुना जाता है। यदि तुमने इसे सुन लिया है, तो इस पर विचार करो। एक बार वह कर लिया है, तो इस पर ध्यान करो। व्यर्थ, निरर्थक तर्क मत करो। एक बार अपने को संतुष्ट कर लो कि तुम अनंत आत्मा हो। यदि यह सत्य है, तो यह कहना मूर्खता है कि तुम शरीर हो, तुम आत्मा हो और उसकी अनुभूति प्राप्त की जानी चाहिए। जिस क्षण तुम यह अनुभव करने लगोगे, तुम मुक्त हो जाओगे। आत्मा को देखना इससे अनंत गुना अधिक यथार्थ होना चाहिए, एकमात्र सत्य अवस्था, एकमात्र सत्य अनुभव, एकमात्र सत्य दर्शन होना चाहिए। तुम अब यह जानते हो। अकेले पुरातन विज्ञानवादी ही नहीं, आधुनिक भौतिकशास्त्री भी अब तुमको बताते हैं कि वहां प्रकाश है।

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