कहां से आए बादल काले?
कजरारे मतवाले!
शूल भरा जग, धूल भरा नभ, झुलसीं देख दिशाएं निष्प्रभ,
सागर में क्या सो न सके यह करुणा के रखवाले?
आंसू का तन, विद्युत का मन, प्राणों में वरदानों का प्रण,
धीर पदों से छोड़ चले घर, दुख-पाथेय संभाले!
लांघ क्षितिज की अंतिम दहली, भेंट ज्वाल की बेला पहली,
जलते पथ को स्नेह पिला पग-पग पर दीपक वाले!
गर्जन में मधु-लय भर बोले, झंझा पर निधियां घर डोले,
आंसू बन उतरे तृण-कण ने मुस्कानों में पाले!
नामों में बांधे सब सपने रूपों में भर स्पंदन अपने
रंगो के ताने बाने में बीते क्षण बुन डाले
वह जड़ता हीरों मे डाली यह भरती मोती से थाली
नभ कहता नयनों में बस रज बहती प्राण समा ले!
– महादेवी वर्र्मा
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