चिकित्सा क्षेत्र की लूट

(डा. शिल्पा जैन सुराणा, वरंगल, तेलंगाना )

डाक्टर  को भगवान का दूसरा रूप माना जाता है। इस पेशे को हमेशा इज्जत की दृष्टि से देखा जाता है, पर आज यह पेशा अपनी गरिमा खो रहा है। डाक्टरों के लिए मरीज सिर्फ रुपया उगलवाने की मशीन बनते जा रहे हैं। कमीशनखोरी की घातक बीमारी आज के चिकित्सकों की नस में घुस गई है। मरीजों को कमीशन की खातिर महंगी-महंगी दवाइयों की लिस्ट पकड़ा दी जाती है। एक आम आदमी अगर बीमार भी पड़ जाता है, तो उसकी खून-पसीने की कमाई ये डाक्टर एक बार में ही निकाल लेते हैं। इस पेशे में अब न मानवता बची है और न कोई शर्म लिहाज। डाक्टर अब लुटेरे बनने लग गए हैं, इसका सबूत है कि जो दवाई मात्र दो रुपए की कीमत में उपलब्ध है, 200 रुपए में बेचते हैं। सरकारी डाक्टर अस्पताल में कम और प्राइवेट प्रैक्टिस करते ज्यादा दिखते है। उस पर भी इन्होंने न केवल अपने क्लीनिक खोल रखे हैं, बल्कि दवाइयों की दुकानें भी खोल रखी हैं। एक मरीज को वहीं चैकअप करवाना पड़ता है, जहां डाक्टर बताए। मरीजों को हिदायत दी जाती है कि वहीं से दवाई खरीदें, जो दुकान उन्हें बताई जाती है। यह समस्या कोई नई नहीं है, पर इसका समाधान करने के लिए कोई राजी नहीं। न कभी सरकार ने और न ही प्रशासन ने इसके लिए कोई कड़े कदम उठाए हैं। हर शहर में पांच सितारा होटलों की तर्ज पर अस्पताल खुल रहे हैं, जहां पर इलाज करवाना अब मजबूरी बन रही है, क्योंकि सारे नामी डाक्टर वहीं बैठते हैं। कई स्टिंग आपरेशन हुए, जिनमें देखा गया कि डाक्टर ने बिना बीमारी के लोगों को बीमार बता कर उनसे पैसे ऐंठे। अगर डाक्टर की लापरवाही से किसी मरीज की मौत हो जाए तो भी उसका लाइसेंस रद्द नहीं होता। स्वास्थ्य के साथ कब तक खिलवाड़ होता रहेगा।

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