बुद्धि को साधना से स्थिर करें

आदमी को धीरे-धीरे क्रम से व धैर्यपूर्वक बुद्धि को नियंत्रित और मन को शांत करके आत्मा में स्थिर करना चाहिए। ऐसा करते वक्त दूसरा कोई चिंतन न करें। अपने स्वरूप को जानने और आत्मा में स्थिर होने के लिए एक लंबी साधना की जरूरत होती है। इसके लिए धीरे-धीरे धैर्य के साथ लगातार चरणबद्ध तरीके से गुरु के बताए अभ्यास को करना होता है…

आधुनिक युग की भागदौड़ भरी भौतकवादी जिंदगी में बुद्धि का भटक जाना आम बात हो गई है। ऐसी स्थिति में न घर चलता है और न संसार। इसलिए साधना करना अत्यंत जरूरी हो जाता है। साधना के बिना जहां संसार अधूरा है, वहीं घर-परिवार के आध्यात्मिक और भौतिक लक्ष्यों को प्राप्त करना भी अगर असंभव नहीं, तो अति कठिन अवश्य हो जाता है। इसीलिए आध्यात्मिक गुरु व धार्मिक लोग हर किसी के लिए साधना की सीख देते हैं। साधना के द्वारा ही एक संपूर्ण व सभ्य जीवन जीया जा सकता है। साधना किस तरह करें, उसकी विधि क्या है, इसी का मंत्र लेकर हम इस बार आए हैं। धर्म गुरुओं की शिक्षा का जो निचोड़ है, उसके अनुसार आदमी को धीरे-धीरे क्रम से व धैर्यपूर्वक बुद्धि को नियंत्रित और मन को शांत करके आत्मा में स्थिर करना चाहिए। ऐसा करते वक्त दूसरा कोई चिंतन न करें। अपने स्वरूप को जानने और आत्मा में स्थिर होने के लिए एक लंबी साधना की जरूरत होती है। इसके लिए धीरे-धीरे धैर्य के साथ लगातार चरणबद्ध तरीके से गुरु के बताए अभ्यास को करना होता है। धैर्य न होने पर अकसर साधक साधना को बीच में ही छोड़ देते हैं। साधना में शंकाओं की वजह से भटकती बुद्धि को ज्ञान से नियंत्रित किया जाता है। ऐसे में ज्ञान और भक्ति के जरिए लगातार मन को बुद्धि में और बुद्धि को आत्मा में स्थिर किया जाता है। साधना के वक्त मन में दूसरे किसी विषय का चिंतन नहीं करना चाहिए। बार-बार यह अभ्यास करने से साधक परिपक्व होने लगता है और अंत में वह बुद्धि को नियंत्रित करना सीख लेता है। बच्चों को पढ़ाई के लिए, युवाओं को अपने व्यवसाय अथवा नौकरी में सफल होने के लिए और ज्यादा उम्र के लोगों को बुढ़ापे की विविध व्याधियों से बचने के लिए साधना सीखनी ही चाहिए। तभी वे एक संपूर्ण जीवन जी पाएंगे और सफलता उनके कदम चूमती रहेगी। वास्तव में जब बुद्धि भटक जाती है तो व्यक्ति कर्म पथ से भी विमुख होने लगता है। महाभारत काल के मुख्य पात्र अर्जुन के साथ भी ऐसा ही हुआ था। वह रणभूमि में उतरने से कतराने लगा था। ऐसी स्थिति में श्री कृष्ण द्वारा दिए गए साधना मंत्र से ही अर्जुन अपनी बुद्धि को नियंत्रित कर पाया था। ऐसा करने के बाद ही वह रणभूमि में उतरा, कर्म पथ पर आगे बढ़ा और अपना फर्ज निभा सका। इस तरह जीवन के हर चरण में साधना की जरूरत है और साधना का पहला मंत्र स्वयं श्री कृष्ण ने दिया था।

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