भारत का इतिहास

उद्देश्य प्रस्ताव संविधान की नींव

डा. राजेंद्र प्रसाद को बधाई देते हुए डा. राधाकृष्ण ने उन्हें देश का तपस्वी सेवक तथा भारत की आत्मा का मूर्त रूप बताया। कई सदस्यों ने अपने बधाई भाषणों में मुस्लिम लीग से अपील की कि वह भी संविधान सभा में शामिल होकर संविधान निमार्ण के काम में सहयोग दे। अध्यक्ष द्वारा प्रक्रिया नियम समिति के निर्विरोध निर्वाचित सदस्यों की घोषण करने के साथ ही  संविधान निर्माण का कार्य प्रारंभ करने से पहले संविधान सभा ने अधिकांश औपचारिकता कार्य निपटा लिए। पंडित नेहरू के शब्दों में यह कार्य कुछ इस प्रकार के थे जैसे कि किसी भू भाग पर विशाल और भव्य प्रसाद को समतल और सपाट कर दिया जाए।

उद्देश्य प्रस्ताव- संविधान निर्माण की दिशा में सबसे पहला काम था जवाहरलाल नेहरू द्वारा 1 दिसंबर को संविधान सभा में प्रस्तुत उद्देश्य प्रस्ताव। संविधान सभा के लिए यह आवश्यक था कि  संविधान निर्माण की ऐतिहासिक यात्रा प्रारंभ करने से पूर्व वह अपने ध्येय और लक्ष्य देश की जनता के तथा संसार के अन्य देशोंके सामने स्पष्ट कर दे। संसार की सभी संविधान सभाओं ने संविधान निर्माण का श्रीगणेश करते समय अपने लक्ष्यों की घोषणा करना आवश्यक समझा था। भारतीय संविधान सभा के लिए ऐसा करना और भी अधिक आवश्यक था, क्योंकि जिस समय 9 दिसंबर, 1946 को सभा की पहली बैठक आरंभ हुई, देश के राजनीतिक वातावरण में, जहां एक ओर अभूतपूर्व उत्साह, दृढ़ संकल्प और नव निर्माण की अदम्य आकांक्षाओं से जागृत राष्ट्रमानस था, वहीं दूसरी ओर अनिश्चय संदेह और  असमंजस के बादल भी घिरे हुए थे। जवाहरलाल नेहरू का यह ऐतिहासिक भाषण उनके जीवन के सबसे महत्त्वपूर्ण सुंदर एवं प्रभावशाली भाषणों में से है। अतीत की स्मृतियां जैसे उनके मन में उमड़ आई थी, भविष्य के स्वप्न जैसे साकार हो आए थे और इस सबके साथ ही उन्हें बोध था वर्तमान में धर्म का, उस समय की कितनी ही जटिल समस्याओें के जटिल बोझ का, अपने भारी कर्र्त्तव्य और उत्तरदरायित्व का । जिस उद्द्ेश्य प्रस्ताव के माध्यम से भारतीय क्रांति के जनकों ने देश को यह बताने का प्रयास किया कि लक्ष्य क्या हैं, वे देश को किस सांचे में ढालना चाहते हैं, किस ओर ले जाना चाहते हैं, उसका मसौदा जवाहरलाल नेहरू ने स्वयं तैयार किया था। यह प्रस्ताव एक प्रकार से प्रभुत्व संपन्न लोकतंत्रात्मक भारतीय गणराज्य की जन्म पत्री था। प्रस्ताव में कहा गया था। (1) यह संविधान सभा अपने इस दृढ़ और गंभीर संकल्प की घोषणा करेगी कि भारत को एक स्वतंत्र प्रभुसत्ता संपन्न गणराज्य घोषित करेगी और उसके भावी शासन के लिए एक  ऐसे संविधान की रचना करेगी। (2) जिसके अंतर्गत वे राज्य क्षेत्र जो ब्रिटिश के अंतर्गत आते हैं  देशी राज्यों के अंतर्गत आते हैं और भारत के ऐसे अन्य भाग जो ब्रिटिश के बाहर हैं और ऐसे राज्य तथा राज्य क्षेत्र जो स्वतंत्र प्रभुत्व संपन्न भारत के भीतर होने के लिए प्रस्तुत हैं।

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