लाभांश में मिले हिस्सा

जनहित तथा विकास के लिए सरकार सड़कें, फोरलेन फ्लाईओवर तथा हाइड्रो प्रोजेक्ट बनाती-लगाती है। इसके लिए सरकार लोगों की मिलकीयत भूमि, घर, दुकानें क्षतिपूर्ति की रकम या मुआवजा देकर हासिल कर लेती है। इसका परिणाम यह होता है कि सैकड़ों की संख्या में परिवारों के परिवार विस्थापन का शिकार हो जाते हैं। उनकी रोजी- रोटी के साधन छिन जाते हैं। उन्हें नई छत की तलाश करनी पड़ती है। उन्हें दोबारा विस्थापित होने के लिए बहुत समय लग जाता है। देखा गया है कि महानगरों के समीप की कृषि योग्य भूमि सरकार किसानों से एक्वायर करके आगे बिल्डरों को दे देती है। कुछ ही सालों में वहां बहुमंजिला इमारतें बन जाती हैं, जिनसे पैसे वाले लोग करोड़ों रुपए कमाते हैं और जो वहां से विस्थापित होते हैं, वो देखते और आहें भरते रह जाते हैं कि कभी यहां उनके खेत लहलहाते थे।  हिमाचल प्रदेश के हजारों लोगो को भाखड़ा बांध बनने के नाम पर, बीएसएनएल प्रोजेक्ट हेतु, पौंग डैम, कोल डैम के लिए उजड़ना पड़ा है। विस्थापित होना पड़ा है। उनकी घराट संस्कृति इससे समाप्त हो गई। बाग- बागीचों, उपजाऊ भूमि, प्राकृतिक जल स्रोतों से वो महरूम हो गए। उत्तराखंड में टिहरी बांध लगने से भी तो वहां के लोगों ने विस्थापन का ऐसा ही दंश झेला है। विस्थापन का दंश बहुत बुरा होता है। विस्थापित अपनी जड़ों से कट कर रह जाते हैं। जड़ों से कटना ही अधिक तकलीफदेह होता है। उन्हें अपने अस्तित्व व जीवनयापन के लिए जो संघर्ष करना पड़ता है, उसका दर्द उन्हें हमेशा चुभता सा रहता है। कई बार यह दर्द असहनीय पीड़ा देता है। गोबिंद सागर झील में डूबे पुराने शहर बिलासपुर के मुख्य गोहर बाजार में तुसली राम हलवाई की बहुत बड़ी दुकान थी। वो विस्थापित होकर नए नगर बिलासपुर में आए तो दुकानदारी चली नहीं। खोखा बनाकर काम किया। आज तुलसी राम हलवाई की तीसरी पीढ़ी यानी पोता भी खोखे में चाय बनाकर परिवार पाल रहा है। उसके पिता, दादा तुलसी राम विस्थापन का दंश झेलते यह दुनिया छोड़ गए। ऐसे कई लोग हैं, जो विस्थापन का दर्द सहते-सहते सरकार की नजर-ए-इनायत होने की बाट जोह रहे हैं। विस्थापितों को उनके अधिकार व उचित मुआवजा मिलना चाहिए। उन्हें विस्थापित बनाकर जो प्रोजेक्ट लगे, उनसे कुछ लाभांश विस्थापितों की तीन पीढि़यों तक मिलना चाहिए।

प्रो. घनश्याम गुप्ता मकान नं. 167 रोड़ा सेक्टर-2, बिलासपुर हि.प्र.