हिंदू विरोधी है बंगाल !

करीब 300 हिंदू परिवारों को दुर्गा पूजा नहीं करने दी गई। इससे पहले भी रामनवमी के उत्सव पर आरएसएस के कार्यकर्ता जुलूस निकालना चाहते थे, लेकिन सरकार और पुलिस ने इजाजत नहीं दी। बलूचिस्तान और कश्मीर पर आधारित कोई कार्यक्रम किया जा रहा था, जिसे अचानक रद्द करना पड़ा। दुर्गा पूजा और रामनवमी के मुद्दों पर उच्च न्यायालय ने हस्तक्षेप किया और पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार को खूब फटकार लगाई। नतीजतन हिंदू अपने त्योहार मना सके। सिर्फ यही नहीं, बंगाल के मालदा, मोदिनीपुर और उत्तरी चौबीस परगना सरीखे कुछ इलाके ऐसे हैं, जहां हिंदुओं पर जुल्म किए जा रहे हैं। मंदिर और पूजागृह तोड़े जा रहे हैं। मूर्तियों के चेहरे विकृत किए जा रहे हैं। हिंदू आबादी अपने घर-आंगन छोड़कर भागने और दयनीय स्थितियों में जीने को विवश है। आरोप है कि ममता सरकार बांग्लादेशी घुसपैठियों को वैधता देते हुए उन्हें नागरिकता दिलाने पर आमादा है। ममता सरकार के मंत्री हकीम के चुनाव क्षेत्र गार्डनरीय को ‘मिनी पाकिस्तान’ कहा जाता है। यह मंत्री जी का अपना ही दावा है। वह पाकिस्तान के पत्रकारों को बुलाकर ऐसा दुष्प्रचार करते रहे हैं और सुर्खियां बटोरते रहे हैं। भारत के भीतर पाकिस्तान…! यह कैसे मुमकिन है? उच्च न्यायालय अक्तूबर, 2016 में भी ‘मुस्लिम तुष्टिकरण’ के लिए ममता सरकार को लताड़ चुका है, लेकिन फिर भी वोट बैंक का यह खेल जारी है। ये घटनाएं ऐसा बिंब बनाती हैं कि लगता है मानो भारतीय बंगाल किसी ‘मुस्लिमस्तान’ का ही हिस्सा है। मौजूदा हालात भी इसी की कोख से जन्मे हैं। सड़कों पर मुस्लिम भीड़ है, तो प्रतिक्रिया में हिंदू भीड़ भी सक्रिय है। पश्चिम बंगाल हिंदू-मुसलमान बन गया है। राज्य के कई इलाके जल रहे हैं, सुलग रहे हैं। भीड़ तोड़-फोड़ कर रही है। पुलिस थानों को भी निशाना बनाया जा रहा है, वाहन जलाए जा रहे हैं। संपूर्ण परिदृश्य ही निरंकुश है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और उनकी सरकारी मशीनरी मूकदर्शक बनी है। भीड़ के हाथों में डंडे, लाठियां, कुल्हाड़ी और पत्थर हैं। कोई रोकने वाला नहीं है। केंद्र सरकार ने अर्द्धसैनिक बलों की जो कंपनियां भेजी हैं, उन्हें तैनात करने का आदेश राज्य सरकार ने नहीं दिया है। यह अधिकार राज्य सरकार का ही है। यदि इन हालात में राज्यपाल केसरीनाथ त्रिपाठी ने मुख्यमंत्री को हालात सुधारने की नसीहत दी है, तो कुछ भी संवैधानिक गलती नहीं की। राज्यपाल मूकदर्शक या सेवानिवृत्त शख्स नहीं हो सकता। संवैधानिक दायित्व उसका भी है। वह राज्य में केंद्र सरकार का प्रतिनिधि होता है। संवैधानिक तौर पर पश्चिम बंगाल के राज्यपाल राज्य के संवैधानिक प्रमुख भी हैं। उस लिहाज से भी वह मुख्यमंत्री को आदेश दे सकते हैं। यदि ममता बनर्जी तिलमिलाए कि राज्यपाल आरएसएस के कार्यकर्ता के रूप में काम कर रहे हैं, तृणमूल कांग्रेस के छुटभैये नेता राज्यपाल को संघ और भाजपा का ‘तोता’ करार दे रहे हैं, तो यह संविधान का ही अपमान और उल्लंघन है। उसके मद्देनजर बंगाल में राष्ट्रपति शासन चस्पां कर देने या सेना के हवाले सौंप देने की मांगें बेमानी नहीं हैं। यदि ममता सरकार एक जनादेश के जरिए निर्वाचित हैं, तो केंद्र सरकार भी चुनी हुई है। उसे अपना प्रतिनिधि राज्यों में भेजने का संवैधानिक अधिकार है। यदि राज्यपाल की नसीहत है कि जाति, धर्म, पंथ, संप्रदाय पर विचार किए बिना ही राज्य सरकार को कानून-व्यवस्था बहाल करनी चाहिए, तो मुख्यमंत्री को मिर्ची लगना स्वाभाविक है, क्योंकि वह तो तुष्टिकरण की राजनीति में संलिप्त हैं। बेशक बंगाल में मुस्लिम आबादी सर्वाधिक है। कुछ इलाकों में तो 50 फीसदी से ज्यादा आबादी मुसलमानों की है, लेकिन उसके मायने ये नहीं हैं कि हिंदुओं पर अत्याचार किए जाएं या उन्हें अपनी जमीन से खदेड़ा जाए। ममता बनर्जी और उनकी पार्टी के बहुसंख्यक नेता हिंदू-बंगाली हैं। वे दुर्गा पूजा को मानते हैं। तो संघ और भाजपा के नेता ऐसे उत्सव क्यों नहीं मना सकते? बंगाल में करीब 34 सालों तक वाम मोर्चे की सत्ता रही। उससे पहले कांग्रेस सरकार में होती थी। अब सत्ता में ममता बनर्जी का दूसरा कार्यकाल है। यानी ये दल ही बंगाल  में राजनीतिक तौर पर प्रमुख रहे हैं। भाजपा का जनाधार तो फिलहाल बौना सा है। वह मुस्लिम या हिंदू प्रभाव के इलाकों में इतने व्यापक स्तर पर सांप्रदायिक तनाव कैसे फैला सकती है? बहरहाल, बंगाल के हालात ठीक नहीं हैं। गोरखालैंड वाले भी हिंसक हो चुके हैं। वहां अनिश्चितकालीन बंद की स्थिति है। ममता बनर्जी ऐसे हालात नहीं बनने दें कि बंगाल का विभाजन ही अपरिहार्य हो जाए।

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