हिमाचल में महिलाएं सुकून से क्यों नहीं रह सकतीं ?

प्रो. एनके सिंह

लेखक, एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया के पूर्व चेयरमैन हैं

पुलिस को अभी तक यही पता नहीं है कि जिस स्थान पर छात्रा का शव मिला, क्या उसी स्थान पर दुष्कर्म हुआ या फिर किसी अन्य जगह पर इसे अंजाम दिया गया। इस दर्दनाक प्रकरण के बाद से प्रदेश भर में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं और कई जगह ये हिंसक रूप भी धारण कर चुके हैं। जांच की पूरी प्रक्रिया में इतना समय खप रहा है कि उतने में सबूतों के साथ आसानी से छेड़छाड़ हो रही है अथवा सबूत मिटाए जा रहे हैं। यह बेहद चिंताजनक स्थिति है कि प्रदेश में कानून-व्यवस्था की स्थिति सामान्यतः बिगड़ रही है…

मैंने उक्त शब्द आंशिक रूप से सरकार के सामने सर्वोच्च न्यायालय द्वारा रखे गए प्रश्न से लिए हैं। आज यह निर्णायक मसला बन गया है, जिसका सामना हिमाचल प्रदेश को करना पड़ रहा है। प्रदेश इस समय शिमला जिला के कोटखाई क्षेत्र में एक छात्रा के साथ बलात्कार व नृशंस हत्या से उपजे लोगों के आक्रोश का सामना कर रहा है। इस गुस्से को यह तथ्य और भड़का रहा है कि प्रदेश में सत्ता व धन के बल पर कुछ लोग अपराध में संलिप्त हैं और उन पर कोई कार्रवाई नहीं हो रही। इसमें कोई संदेह ही नहीं हो सकता, जैसा कि प्रदर्शन के लिए सड़कों पर उतरे लोग भी कह रहे हैं कि प्रभावशाली लोग राजनीतिक ताकत व धन के मद में अपराध को अंजाम दे रहे हैं। जिस तरह इस मामले की जांच चल रही है, उससे उससे यह समझना मुश्किल नहीं होगा कि इसे प्रभावित किया जा रहा है। पुलिस को अभी तक यही पता नहीं है कि जिस स्थान पर छात्रा का शव मिला, क्या उसी स्थान पर बलात्कार हुआ या फिर किसी अन्य जगह पर इसे अंजाम दिया गया। इस दर्दनाक प्रकरण के बाद से प्रदेश भर में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं और कई जगह ये हिंसक रूप भी धारण कर चुके हैं। इससे उन लोगों की अंतरात्मा जाग जानी चाहिए, जो अब तक किंकर्त्तव्यविमूढ़ रहे हैं। अब यह अच्छा है कि केंद्रीय जांच ब्यूरो को इस पेचीदा मामले की जांच करने के लिए कहा गया है। जांच की पूरी प्रक्रिया में इतना समय खप रहा है कि उतने में सबूतों के साथ आसानी से छेड़छाड़ हो रही है अथवा सबूत मिटाए जा रहे हैं। यह बेहद चिंताजनक स्थिति है कि प्रदेश में कानून-व्यवस्था की स्थिति सामान्यतः बिगड़ रही है और बाहर से आने वाले लोग भी कई अपराध कर रहे हैं। महिलाओं के गायब हो जाने की घटनाएं निरंतर बढ़ रही हैं और इन्हें या तो बाहरी प्रदेशों को तस्करी कर भेजा जा रहा है अथवा आपराधिक घटनाओं में इनका प्रयोग हो रहा है। पिछले समय में अकेले ऊना व कांगड़ा जिलों में ही 288 महिलाएं लापता हुई हैं और उनमें से सैकड़ों को अभी तक ढूंढा नहीं जा सका है। राजनीतिक दखलअंदाजी व धन का प्रभाव इस हद तक बढ़ चुका है कि यहां अब अपराध करना आसान हो गया है तथा छोटा प्रदेश होने के कारण सत्ता तक प्रभावशाली लोगों की पहुंच हो गई है।

आम अनुभव यही है कि इस तरह के अपराध व कानून के उल्लंघन की घटनाएं विरली नहीं हैं, बल्कि प्रदेश में अकसर ऐसी घटनाएं हो रही हैं। हिमाचल प्रदेश में बढ़ते अपराध को तसदीक करते कई ऐसे मामले गिनवाए जा सकते हैं। अंब उपमंडल के कारलोही में पांच साल पहले एक नाबालिग लड़की की हत्या कर दी गई, परंतु अभी तक इस मसले को सुलझाया नहीं जा सका है। हत्या के आरोपी अब तक पकड़े नहीं जा सके हैं और मामले की फाइल बंद कर दी गई है। इस मामले में चूंकि शिमला मामले जैसे प्रदर्शन नहीं हुए, इसलिए इस मामले को हल नहीं किया जा सका। पीडि़ता को न्याय दिलवाने के लिए इस मामले को दोबारा खोलने की जरूरत है। कई वर्षों पूर्व मेरा खुद एक ऐसे मामले से सामना हुआ, जब कुछ सामाजिक कार्यकर्ता अनुसूचित जनजाति की एक नाबालिग लड़की को लेकर आए। उसके साथ कुछ दरिंदों ने सामूहिक बलात्कार किआ था। इस मामले में कुछ वरिष्ठ अधिकारी संलिप्त थे। पुलिस ने इस मसले को संजीदगी के साथ नहीं लिया और आरोपी खुले घूमते रहे। मैं दिल्ली से आया ही था और इस मसले को गंभीरता से लिया। मैंने मीडिया के प्रतिनिधियों को बुलाया, लेकिन उन पर भी ऊपर से प्रभावशाली लोगों का दबाव पड़ गया। मुझे चंडीगढ़ के एक राष्ट्रीय अखबार के संपादक से बात करनी पड़ी। उन्होंने दयालुता दिखाते हुए अंब में मेरे गांव में एक रिपोर्टर भेजा। जब इस राष्ट्रीय अखबार में रिपोर्ट छपी, तब जाकर सरकार ने न्यायिक जांच शुरू की। इसी के साथ मैंने इस मामले को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में दायर किया। जब मामला न्यायालय में पहुंचा, तो अपराध साबित नहीं किया जा सका क्योंकि गवाहों को चुप रहने के लिए रिश्वत दी जा चुकी थी। हिमाचल का मामला एक मिसाल है, क्योंकि यहां विकसित परिवहन प्रणाली नहीं है और न ही न्याय पाने के पर्याप्त साधन हैं।

कोटखाई प्रकरण समय बीतने के साथ-साथ लगातार पेचीदा होता जा रहा है। इस मामले के बिगड़ने का एक बड़ा कारण प्रदेश पुलिस की ढुलमुल कार्यशैली भी मानी जा सकती है। जब यह मामला प्रकाश में आया, तो सबसे पहले पुलिस ने प्राथमिकी दर्ज करने में देरी की। जनता द्वारा बनाए गए दबाव में जब प्राथमिकी दर्ज हुई, तो अगली कार्रवाई करने में भी उसने लेटलतीफी बरती। पुलिस के इस रवैये से जनता का संदेह बढ़ा और आक्रोश भी। बाद में जनता के दबाव के चलते पुलिस प्रशासन कुछ हरकत में आया और उसने संदेह के आधार पर कुछ आरोपियों को गिरफ्तार भी किया। तभी इस प्रकरण में एक और मोड़ आ जाता है, जब हिरासत में लिए गए एक आरोपी की पुलिस थाने में ही हत्या हो जाती है। इस सारे उतार-चढ़ाव में जनता में आक्रोश पनपना स्वाभाविक ही है और उसका परिणाम पुलिस वाहन और थाने में आगजनी के रूप में सामने आया। कहना न होगा कि इस पूरे प्रकरण में पुलिस की छवि ताक पर है। इस मामले से सबक लेते हुए हमें आने वाले वक्त में एक ऐसी व्यवस्था बनानी होगी, जिसमें दुष्कर्म या हत्या सरीखे गंभीर अपराध के मामलों में तुरंत प्राथमिकी दर्ज करके जांच को एक सप्ताह की समय सीमा में निपटाया जा सके। प्रदेश को इस तरह के अमानवीय अपराध से मुक्त रखने के लिए ऐसा करना अवश्यंभावी हो जाता है। पुलिस ने अपने राजनीतिक आकाओं के सामने समर्पण कर रखा है और वह उनके इशारों पर नाच रही है। कानूनों का उल्लंघन होने पर पुलिस अपने आकाओं से निर्देश प्राप्त करती है और उसी की इच्छा अनुरूप मामले को चलाती है। सभी स्तरों पर धन का प्रभाव बढ़ गया है और गरीब लोगों के न्याय प्राप्त करने की राह में कई बाधाएं हैं। अब यह सही वक्त है कि महिलाओं को सुरक्षा दी जाए और अपराध को रोकने के लिए बुराई को आरंभ में ही रोका जाए। अपराध की रोकथाम के लिए पेशेवर तरीके व्यवहार में लाने के वास्ते पुलिस में और महिला अधिकारियों की जरूरत है, न कि पुलिस कांस्टेबल की। हिमाचल को अपनी कानून व व्यवस्था सुधारने के लिए संपूर्ण सुधारों की जरूरत है, तभी पुलिस प्रणाली प्रभावशाली बनेगी और वह सत्ता तथा धन के प्रभाव से मुक्त होगी।

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पहला यात्री : शराब पर जीएसटी क्यों नहीं लगा है?

दूसरा यात्री : सरकार चाहती है कि लोग आराम से रहें।

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