अभाव से मिला संघर्ष का जज्बा

चित्रकार सोभा सिंह का परिवार ख्याति प्राप्त लोगों का परिवार था। उनके दादा चढ़त सिंह महाराजा रणजीत सिंह की सेना में थे। 19वीं शताब्दी में वह गुरदासपुर  जिला के श्री हरगोबिंदपुर में बस गए। सोभा सिंह भी शुरू में यहीं रहे, लेकिन बाद में वह हिमाचल के अंद्रेटा में बस गए। उनका जन्म दो नवंबर, 1901 ईस्वी को हुआ था। दो नवंबर 2001 को अंद्रेटा में सरकार की ओर से उनकी जन्म शताब्दी भी मनाई गई। सोभा सिंह ने गुरुओं, अवतारों व पैगंबरों की पेंटिंग बनाकर चित्रकला जगत को समृद्ध किया। कद-काठी में वह लंबे तथा देखने में सुंदर थे। उनके चेहरे पर सफेद दाढ़ी उनकी अलग पहचान बनाती थी। चित्रकला के कार्यों को अंजाम देने के लिए उन्होंने एक स्टुडियो भी बना रखा था। इस स्टुडियो का वातावरण आध्यात्मिक था तथा यहां आने वाला हर व्यक्ति मानसिक शांति महसूस करता था। इसे कलात्मक ढंग से सजाया गया था। उनके चाहने वाले व सम्मान देने वाले उन्हें अकसर आदरणीय श्रीमान कहते थे। वह मृदुभाषी, शांत स्वभाव व धैर्य वाले, दूसरों को समझने वाले और जुनूनी थे। उनका जन्म श्रीहरगोबिंदपुर में अच्छरां व देवा सिंह के यहां हुआ था। चार वर्ष की आयु में ही उनकी माता उन्हें अकेले छोड़ कर परलोक चली गईं। इसके बाद उनका जीवन अपने पिता, जो सेना में प्रारूपकार थे, के कड़े अनुशासन में बीता। उनका पालन-पोषण मुख्यतः उनकी बड़ी बहन लच्छमी ने किया। उनके परिवार में ऐसी स्थितियां बनीं कि वह मिडल स्कूल तक भी नहीं पढ़ पाए, इसके बावजूद उच्च शिक्षित व्यक्ति बन गए। वर्ष 1919 में वह प्रारूपकार के रूप में सेना में शामिल हो गए। इसी दौरान वह अपनी चित्रकला का प्रदर्शन करने के लिए इराक के बसरा भी गए। वहां से वापस आने के बाद इंद्र कौर से उनकी शादी हो गई। धनाभाव के कारण उनके आरंभिक दिन बड़ी मुश्किलों में बीते। इससे उन्हें कड़े संघर्ष की सीख मिली तथा वह अपनी चित्रकला में विविधता लाते रहे। वह करीब तीन वर्षों तक अमृतसर में भी रहे। यहां से वह लाहौर चले गए। वहां पर भी उन्होंने अपनी चित्रकला से कई लोगों को प्रभावित किया। लाहौर से लौटने के बाद उन्होंने दिल्ली के कनाट प्लेस में अपना स्टुडियो स्थापित किया। उनके मन में सदा एक ख्वाहिश रही कि किसी ऐसी जगह में स्थायी रूप से बसा जाए जो प्रकृति के अधिक निकट हो। अंततः उन्होंने नैसर्गिक सौंदर्य से  भरपूर अंद्रेटा में बसने का फैसला किया। यहां पर वह जीवन के अंतिम क्षणों तक रहे। अंद्रेटा में वह भारत के विभाजन के कुछ दिन बाद 1947 में आए। उन्होंने अपने मित्रों, राज्यपालों, मुख्यमंत्रियों तथा जवाहर लाल नेहरू व इंदिरा गांधी जैसे प्रसिद्ध लोगों के चित्र भी बनाए, इसके बावजूद उन्होंने अपनी कलम मुख्यतः गुरुओं, अवतारों, पैगंबरों, संतों व ऐतिहासिक पात्रों के चित्रांकन को समर्पित की। इसके कारण उन्हें दैवी कलाकार का तमगा मिला। गुरु नानक देव, गुरु गोबिंद सिंह तथा गुरु तेग बहादुर के चित्र भी उन्होंने बनाए।  श्री राम, कृष्ण, ईसा मसीह, संत फरीद, रविदास, शहीद भगत सिंह, महाराजा रणजीत सिंह, प्रिंस दलीप सिंह, सोहनी-महिवाल, कांगड़ा ब्राइड तथा भारत माता जैसी रचनाएं उनके प्रमुख चित्रों में शामिल हैं। उनकी योग्यता को देखते हुए पंजाब सरकार ने उन्हें वापस अपने प्रदेश ले जाने की कोशिश भी की, लेकिन वह अंत तक अंद्रेटा में ही रहे तथा यहीं पर उन्होंने 22 अगस्त 1986 को अंतिम सांस ली। आज वह भले ही हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन अपने सृजनात्मक कार्यों में वह आज भी जिंदा हैं।  गुरुओं, अवतारों, पैगंबरों, ऐतिहासिक पात्रों तथा कांगड़ा ब्राइड जैसे कलात्मक चित्रों के रचयिता सोभा सिंह भले ही पंजाब से थे, लेकिन उनका अधिकतर जीवन अंद्रेटा (हिमाचल) की प्राकृतिक छांव में सृजनशीलता में बीता। इन्हीं की जीवनी और उनके विविध विषयों पर विचारों को लेकर आए हैं प्रसिद्ध लेखक डॉ, कुलवंत सिंह खोखर। उनकी लिखी पुस्तक ‘सोल एंड प्रिंसिपल्स’ में सोभा सिंह के दार्शनिक विचारों का संकलन व विश्लेषण किया गया है। किताब की विशेषता यह है कि इसमें कला या चित्रकला ही नहीं, बल्कि अन्य सामाजिक विषयों पर भी मंथन किया गया है। आस्था के विभिन्न अंकों में हम उन पर लिखी इसी किताब के मुख्य अंश छापेंगे जो उनके आध्यात्मिक पहलुओं को रेखांकित करते हैं। इस अंक में पेश है उनकी संक्षिप्त जीवनीः

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