असुरक्षित निर्माण की बाढ़

(निधि शर्मा, बिलासपुर)

कोटरूपी में बरपा कहर महज एक हादसा नहीं, बल्कि मानवीय भूलों का एक प्रत्यक्ष प्रमाण है कि कैसे छलनी होते पहाड़ मौत बनकर टूट रहे हैं। हर तरफ इमारतों का जंजाल और बीच में पिसती प्रकृति ने मानवीय विकास पर सावलिया निशान खड़ा कर दिया है। प्रदेश में किसी भी पार्टी की सरकार रही हो, वोट बैंक के लिए बार-बार रिटेंशन पालिसी लाने से प्रदेश में अवैध निर्माण को बढ़ावा दिया गया है। कैग की रिपोर्ट के मुताबिक सरकारें वर्ष 1997 से 2009 तक छह बार अवैध निर्माण को राहत पहुंचाने के लिए रिटेंशन पालिसी ला चुकी हैं। इसी रिपोर्ट ने वन भूमि पर बढ़ते अवैध कब्जों के लिए भी सरकार को जिम्मेदार माना है। यही अवैध कब्जे मनचाहे ढंग से पहाड़ों में निर्माण को बढ़ावा दे रहे हैं। यही कारण है कि कमजोर होते पहाड़ बरसात के मौसम में मौत बनकर टूट पड़ते हैं। कैग की ही रिपोर्ट के मुताबिक राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की 2013 की असेस्मेंट रिपोर्ट में भूकंप जैसी आपदा के समय करीब 14 लाख लोगों के गंभीर घायल होने का अनुमान जताया था, लेकिन इस रिपोर्ट को राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण में कभी पेश ही नहीं किया गया। इससे पता चलता है की प्रदेश सरकार आपदाओं को लेकर कितनी गंभीर है। गौर हो कि प्रदेश की दो नगर निगम और टीसीपी जैसे कई निकाय शहरीकरण को नियंत्रित करने में असफल रहे हैं। अभी हाल में ही सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने एक फैसले में कसौली में बन रहे गैर कानूनी होटलों के निर्माण पर कहा था कि वहां केवल तीन मंजिला होटल निर्माण हो सकता है लेकिन सरकार के नाक के नीचे चार से पांच मंजिला होटल खड़े हो रहे हैं। कोई इन्हें पूछने वाला नहीं है। अगर समय रहते न जागे तो कई जख्म सहने पड़ेंगे।

विवाह प्रस्ताव की तलाश कर रहे हैं ? भारत मैट्रीमोनी में निःशुल्क रजिस्टर करें !