कविता

प्यास

पलकों में नींद कहां

हलचल सी मची है मैखाने में

हुस्ने तसव्वुर को साकी

तस्वीर तेरी देखता प्याले में

है प्यास जो नहीं बुझती

अतिशेदर्द सी भड़कती है

जैसे बियां बां जंगल में

रूहेफरिश्ते तड़पती है

मुद्दत हुई पीते-पीते

सूफियों के लबों पर खामोशी

पैमाने छलकते शीशे से

प्यास अभी भी है बाकी

-अंबरीश, न्यू विलेज पत्रालय, माजरा, सिरमौर

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