खेतों से बंदर, अब घुसने लगे घर के अंदर

हनुमान जी की सेना के रूप में आम जनमानस के लिए पूजनीय रहे बंदर ऐसे खुराफाती हुए कि किसानों को दाने-दाने के लाले पड़ गए हैं। कल तक गुड़-चना डालकर अपने अराध्य देव को खुश करने में लगे किसान आज बंदरों के आतंक से इस कद्र परेशान हैं कि घाटे का सौदा साबित हो रही खेती से ही वे मुंह मोड़ने लगे हैं…

हरिपुर — उपमंडल देहरा के अंतर्गत हरिपुर व इसके आसपास के गांवों बगोली, भटोली फकोरियां, खैरियां झकलेहड़, बासा, मेहवा, गुलेर व बिलासपुर के निवासियों ने बंदरों के आतंक के कारण खेती करना छोड़ दी है। गुलेर रेलवे स्टेशन के आसपास के खेत कभी धान की फसल से लहलहाते थे, परंतु पिछले कुछ वर्षों से बंजर हैं। मक्की धान व गेहूं की खेती की जगह किसान पशुओं के चारे को बढ़ावा दे रहे हैं।  इन बंदरों के आतंक के कारण हरिपुर व गुलेर के लोग इतने परेशान हैं कि महिलाओं व बच्चों ने अकेले घर से निकलना बंद कर दिया है। कभी इक्का-दुक्का दिखाई देने वाले बंदरों की अब पूरी फौज ही तैयार हो गई है। जो इलाके की गलियों, लोगों के घरों की छतों, रेलवे स्टेशन व बस स्टैंडों पर राज करती है। सरकार द्वारा बंदरों की नसबंदी करवाए जाने पर लोगों में जहां उनकी आबादी के नियंत्रण की आस जगी थी वह उल्टा किसानों व स्थानीय निवासियों के लिए मुश्किलों का सबब बन गई है। आस्था का प्रतीक माने जाने वाली हनुमान की सेना अब आफत की सेना बनती नजर आ रही है, जो कि दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है।

बाजार से अनाज खरीदने को मजबूर

ग्राम पंचायत  प्रधान भटोली फकोरियां हरिओम शर्मा का  ने कहा कि बंदरों के उत्पात से पहले उनकी बेशकीमती जमीनों पर फसल की काफी अच्छी पैदावार होती थी, जिसके चलते अपने खाने के अलावा फसल को बेच भी लेते थे। जब से बंदरों का आगमन हुआ है तब से  खाने के लिए भी अनाज बाजार से खरीदना पड़ता है।

हरे-भरे खेत बंजर होने के कगार पर

गुलेर के रिटायर्ड प्रिंसीपल नंद किशोर परिमल  का कहना है कि बंदरों का आतंक अब बाजारों में भी बढ़ गया है । बंदरों के डर से किसान पहले ही फसल उगाना छोड़ चुके हैं।  धान-मक्की व गेहूं की फसल से हरे-भरे खेत आज बंजर नजर आ रहे हैं। किसान भी खेतीबाड़ी छोड़कर किसी अन्य काम में जुट गए हैं। सरकार को चाहिए कि लोगों को जल्द बंदरों से छुटकारा दिलाया जाए।

घरों के अंदर घुसकर मचा रहे आतंक

बगोली के पूर्व प्रिंसीपल सुदर्शन शर्मा  का कहना है कि फसल की बात तो दूर अब तो अपने घर में रहना भी बंदरों ने मुश्किल कर दिया है। किसी भी चीज को बंदर तहस-नहस करना नहीं छोड़ते हैं। बंदरों के उत्पात के कारण नौनिहालों को स्कूल भेजने से भी डर लगता है। नौनिहालों को स्वयं स्कूल छोड़ने और स्कूल से घर लाने के लिए जाना पड़ता है । हर पल हमले का डर लगा रहता है।

बंदरों के डर से सड़कों पर चलना दुश्वार

भटोली फकोरियां के राजेंद्र शर्मा  का कहना है कि बंदरों के उत्पात से फसल बीजना तो दूर घर में रहना काफी मुश्किल हो गया है। बंदर डरने की बजाय अब लोगों को डराते हैं। घर के अंदर घुसकर खाने की चीजों को उठाकर ले जाते हैं। डर के मारे लोग बच्चों को अकेले स्कूल भेजने से कतराने लगे  हैं।  किसान चाहकर भी अब खेती नहीं कर पा रहे हैं। सारा राशन खरीद कर लाना पड़ रहा है।

दुखी होकर किसानों ने छोड़ी खेतीबाड़ी

हरिपुर के पूर्व प्रधान प्रवीण कुमार का कहना है कि  बंदरों के उत्पात से आहत होकर उन्होंने फसलें बीजना छोड़ दी हैं और अब तो मात्र खाने के लायक ही फसल होती है। बंदरों के उत्पात से निजात दिलाने के लिए सरकार को कदम उठाना चाहिए। पूरे साल का राशन खिलाने वाले खेत आज बंजर होने के कगार पर हैं।  चारों तरफ हरे-भरे दिखने वाले खेत आज बंजर होने की कगार पर पहुंच गए हैं।

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