टीहरा के चार गांवों ने पांच साल से छोड़ी खेती

हनुमान जी की सेना के रूप में आम जनमानस के लिए पूजनीय रहे बंदर ऐसे खुराफाती हुए कि किसानों को दाने-दाने के लाले पड़ गए हैं। कल तक गुड़-चना डालकर अपने आराध्य देव को खुश करने में लगे किसान आज बंदरों के आतंक से इस कद्र परेशान हैं कि घाटे का सौदा साबित हो रही खेती से ही मुंह मोड़ने लगे हैं…

अवाहदेवी  – टीहरा उपतहसील के कई गांव बंदरों के आतंक से परेशान हैं। यहां सैकड़ों नहीं, हजारों की तादाद में बंदरों का आतंक क्षेत्र में बना हुआ है। क्षेत्र के अगर चार प्रमुख गांवों की बात करें तो यहां 50 से अधिक ऐसे परिवार हैं, जिन्होंने अब बंदरों के आतंक के कारण खेती करना ही छोड़ दी है। कभी जहां 3क्षेत्र में मक्की की बंपर फसल होती थी, वहीं अब 100 एकड़ से अधिक से ऐसी जमीन हैं, जहां मक्की की जगह घास लहरा रही है। क्षेत्र में बंदरों के साथ ही सूअरों का भी आतंक बना हुआ है। यही हालत क्षेत्र की ग्रयोह पंचायत के कांगो का गहरा, थाना,  ढगवाणी और चंदपुर गांवों में बंदरों के आतंक से लोग सबसे अधिक परेशान हैं। इन गांवों में 50 से अधिक परिवार खेती नहीं करते हैं। इनमें तो कई लोगों को खेती छोड़े पांच साल हो चुके हैं। वहीं इन गांवों के घरों में भी बंदरों का आतंक बना हुआ है।

छोड़ दिया मक्की बीजना

ढगवाणी गांव के 60 वर्षीय रतन देव शर्मा का कहना है कि जहां क्विंटलों के हिसाब से मक्की की फसल होती थी, वहां अब बंदरों के आतंक से मक्की बीजना ही लोगों ने छोड़ दिया है। इससे बुरा क्या हो सकता कि अपनी आंखों से अब भूमि को बंजर होते देखना पड़ रहा है।

दुकानदारी करना भी पड़ रहा भारी

ग्रयोह गांव के 54 वर्षीय मनोहर लाल पेशे से सब्जी की दुकान करते हैं। उनका कहना है कि बंदरों ने खेती तो छुड़वा ही दी है और अब दुकान भी करने नहीं दे रहे हैं। अगर दुकान छोड़कर कहीं बाहर तक नहीं जा सकते हैं। पहले गांव थोड़ी बहुत लोगों ने मक्की बीज रखी है, लेकिन उसकी भी रखवाली करनी पड़ रही है। दिन में बंदरों से तो रात को सूअरों से पहरा देना पड़ रहा है। ऐसे हालात में किसान क्या करें?

अब बिजाई का खर्चा निकालना भी मुश्किल

थाना गांव के 38 वर्षीय संजीत चौहान का कहना है कि पहले बंदरों का आतंक नहीं था तो खूब मक्की की फसल होती थी। अपने गुजारे के बाद मक्की भी किसान बेच लेते थे, लेकिन अब किसानों ने मक्की की फसल बीजने का काम आधे से कम कर दिया है। अब तो अगर बंदरों से खेतों की रखवाली न करें तो जितना बुआई में खर्चा आया है, उतने की भी पैदावार किसान को नहीं मिलती है।

जंगलों में फलदार पौधे लगाने से होगा सुधार

कोट गांव के  41 वर्षीय समाजसेवी सुनील अत्री  का कहना है कि वन विभाग को जंगलो में फ ल दार पौधे लगाने चाहिएं, ताकि बंदर लोगों की जमीन पर उगी फसल को नुकसान न पहुंचा सके। उनके गांव के साथ ही आसपास के गांवों में तो लोगों को आजकल खेतों में पहरा देने से ही फुर्सत ही नहीं है। युवा पीढ़ी पहले ही खेती नहीं करना चाहती है और ऐसे हालात में बाकी लोग भी खेती करना छोड़ रहे हैं।

घाटे का सौदा साबित हो रही खेतीबाड़ी

कांगो का गहरा के 33 वर्षीय मदन लाल का कहना है कि बंदरों के आतंक से खेतीबाड़ी छोड़ने को मजबूर हो गए हैं। उनके गांव में तो 80 फीसदी फसल को बंदर बर्बाद कर देते हैं। फिर कोई खेती क्यों करेगा। उन्होंने बताया कि पिछले साल जितनी मक्की लगाई थी, उसमें 50 किलो भी घर वापस नहीं आई। सब बंदरों और सूअरों ने बर्बाद कर दी। अब खेती घाटे का सौदा साबित हो रहा है।

खेतों से लेकर घरों तक में बंदरों का आतंक

थाना 42 वर्षीय संतोष सिंह  का कहना है बंदरों का आतंक अब खेतों में ही नहीं, बल्कि घरों तक पहुंच चुका है। छोटे बच्चों को घर के बाहर छोड़ना मुश्किल हो गया है। अभी 50 के लगभग परिवार खेती नहीं कर रहे हैं और हर साल यह आंकड़ा बढ़ता ही जा रहा है। यही हाल रहा तो क्षेत्र में आधे से ज्यादा लोग खेती करना छोड़ देंगे, जिससे आने वाले समय में अनाज संकट पैदा हो सकता है।

विवाह प्रस्ताव की तलाश कर रहे हैं ? भारत मैट्रीमोनी में निःशुल्क रजिस्टर करें !