डोकलाम विवाद से चिढ़े चीन ने खतरे में डाला हिमाचल

पिछले 11 साल से चली आ रही व्यवस्था को ड्रैगन ने दिखाया ठेंगा, इस बार नहीं आ रहे सीमा पार से नदियों के जलस्तर के आंकड़े

शिमला— डोकलाम विवाद से चिढ़ा चीन इस बार हिमाचल प्रदेश को नदियों में जल स्तर के आंकड़े न देकर बहाने बनाने में जुटा हुआ है। हर साल चीन की तरफ से बरसात के दौरान हिमाचल को सतलुज पर आधारित तिब्बत क्षेत्र की नदियों के आंकड़े जुटाए जाते थे। वर्ष 2000, 2004 और 2006 में सतलुज में आई बाढ़ के दौरान यह व्यवस्था बनी थी कि चीन की तरफ से हर साल आवश्यक सूचनाएं जुटाई जाती रहेंगी, ताकि इस बड़ी नदी के किनारे रहने वाले लोगों को समय पर अलर्ट किया जा सके। पराछू कृत्रिम झील सतलुज के रास्ते हिमाचल में तांडव मचा चुकी है। इससे अरबों रुपए की हानि हुई थी। डेढ़ सौ से भी ज्यादा लोग मारे गए थे। किन्नौर से लेकर बिलासपुर तक तबाही का मंजर अब भी लोग भूले नहीं हैं, मगर इस बार दो देशों के बीच विवाद कुछ ऐसा बढ़ा है कि चीन ने आवश्यक आंकड़े देने में भी आनाकानी शुरू कर दी है। हालांकि सेटेलाइट पिक्चर्स के साथ-साथ चीन बार्डर के समीप केंद्रीय भू-जल आयोग के साथ-साथ अन्य एजेंसियां भी अपने स्तर पर जल स्तर मापती हैं व उस पर लगातार निगरानी रखी जाती है, मगर देश की सीमा के भीतर हिमाचल की तरफ यह ज्यादा मायने नहीं रखता, क्योंकि असल आंकड़े तो तिब्बत की उन नदियों के मायने रखते हैं, जिनका जल स्तर बरसात के दौरान खतरे का निशान पार कर रहा है। तिब्बत में ही ऐसी कई कृत्रिम झीलें बन चुकी हैं, जो बरसात के दौरान बारूद से कम साबित नहीं होतीं। इन सबके मुंह सतलुज की तरफ खुलते हैं। चीन की थोड़ी सी भी शरारत सतलुज को रौद्र रूप दिखाने के लिए मजबूर करती है। हालांकि दावा यही है कि अभी तक ऐसी कोई दिक्कत नहीं है। सतलुज में भले ही जल स्तर बढ़ रहा हो, मगर खतरे का निशान पार नहीं कर रहा है।

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