नीतीश की सोच का खोट

(सूबेदार मेजर (से.नि.) केसी शर्मा, गगल )

दलबदल भारतीय राजनीति में आजकल जोरों पर है। अपने सुरक्षित सियासी करियर की खातिर कई बड़े व सिद्धांतवादी नेता भी दूसरे दल में जाने को आतुर दिखते हैं। जोड़-तोड़ की राजनीति ने इतना भय पैदा कर दिया है कि पार्टी को अपने ही विधायकों पर भरोसा नहीं रहा है कि न जाने कब उनकी नीयत बदल जाए। हाल ही में राज्यसभा चुनावों से ऐन पहले गुजरात कांग्रेस के कुछ विधायकों को एक रिजॉर्ट में कड़ी निगरानी में रखा गया। बिहार की राजनीति में जो भूचाल आया, वह भी जनता के सामने ही है। नीतीश कुमार ने बिहार में सत्ता की खातिर लालू यादव को छोड़कर भाजपा का दामन थाम लिया। बेशक लालू प्रसाद यादव परिवार अथाह भ्रष्टाचार के आरोपों में उलझा है, लेकिन यह सब नीतीश को उनके साथ सरकार बनाने से पहले भी सोचना चाहिए था। यहां खोट नीतीश कुमार की सोच में है, जिन्होंने बिहार को अच्छा शासन देने का संकल्प ही तोड़ दिया। दूसरी ओर भाजपा नीतीश को अब भी दिल से स्वीकार नहीं कर पाई है। उसने महज आंकड़ों के खेल में अपना पलड़ा भारी दिखाने के लिए यह चाल चली है और उसमें वह काफी हद तक सफल भी हो गई है। इस प्रकार भाजपा को यह प्रचारित करने का भी अवसर मिल गया कि उसकी एक और राज्य में सरकार है। ऐसा अवसरवाद दुर्भाग्यपूर्ण ही है।

विवाह प्रस्ताव की तलाश कर रहे हैं ? भारत मैट्रीमोनी में निःशुल्क रजिस्टर करें !