पद की गरिमा मत भूलें

(दीक्षा शर्मा, धर्मशाला, कांगड़ा)

अपने कार्यकाल के अंत में पूर्व राष्ट्रपति हामिद अंसारी ने सोचा-समझा एक विवादित बयान दिया कि हाल के वर्षों में भारतीय मुसलमानों में भय का वातावरण बना है। अंसारी पिछले कई दशकों से भारतीय राज्य के अंतर्गत प्रतिष्ठा के पदों पर कार्यरत और पिछले दस साल से देश के उप राष्ट्रपति भी रहे हैं। यदि उनको ऐसा वातावरण लग रहा था तो उनका यह संवैधानिक और नैतिक दायित्व था कि सार्वजनिक या गोपनीय तरीके से सरकार को अपनी राय से अवगत कराते। इसके बजाय उन्होंने अपनी भावनाओं को जाहिर करने के लिए जो जगह और स्थान चुना, वे सही नहीं थे। सार्वजनिक-संवैधानिक पदों पर आसीन लोगों से आम तौर पर अपेक्षा रहती है कि वे कोई भी ऐसा बयान न दें, जिससे लोगों में घृणा का भाव पैदा होता हो। ऐसे में अकसर उनसे बयानबाजी या टिप्पणियों के दौरान जिम्मेदारी और विवेक की अपेक्षा की जाती है। इसके विपरीत जाकर अंसारी ने जो बयान दिया, उसके पीछे कोई ठोस आधार भी नहीं दिखता। ऐसे में स्वाभाविक था कि उनके बयान पर बवाल मचता। भविष्य में देश के सार्वजनिक व संवैधानिक पदों पर आसीन लोगों से अपेक्षा रहेगी कि वे सोच-समझकर ही बयान जारी करें, ताकि देश-समाज में किसी तरह की दुर्भावना न फैले।

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