पीरभ्याणू लखदाता

हिमाचल प्रदेश के जनपद बिलासपुर मुख्यालय  से चालीस किलोमीटर की दूरी पर समुद्र तल से एक हजार तीन सौ पचास मीटर की ऊंचाई पर  सरयून धार के आंचल में स्थित पीरभ्याणू लखदाता  मंदिर अनायास ही धार्मिक पर्यटकों की पहली पसंद बनता जा रहा है। मंदिर के अंदर लखदाता पीर की कब्र पर एक विशेष प्रकार का चमकीला कपड़ा, नीली,  हरी चादर चढ़ी रहती है। यहां तेल का अखंड दीपक बारहमासा प्रज्वलित रहता है। मंदिर प्रांगण से पूर्व, पश्चिम, उत्तर व दक्षिण दिशा में क्रमशः मुरारी देवी, श्रीनैना देवी, मोतियोंजड़ा हिमंडित धौलाधार व हिडिंबा माता के मंदिर का बिहंगम दृश्य मन को बरबस ही मोह लेता है। इस मंदिर में सभी धर्म संप्रदायों के श्रद्धालुओं के आवागमन के कारण यह सांप्रदायिक सद्भावना की मिसाल पेश करता है। मंदिर प्रांगण में गुरु नानक देव जी का झंडा, बाबा बालकनाथ ,गुरु गोरखनाथ मंडली, वैष्णो देवी, भैरोनाथ की मूर्तियां हैं। बहु प्रचलित लोक कथा के अनुसार करीब पांच सौ वर्ष पूर्व एक भक्त को लखदाता पीर ने सपने में दर्शन दिए और इस चोटी पर लखदाता के चिराग होने की बात बताई । उस भक्त ने ब्रह्मा मुहूर्त में उस चोटी की पंद्रह, बीस फुट खुदाई से मिले चिराग से ग्रामीणों के सहयोग से इस मंदिर की नींव रखी बताई जाती है। लखदाता पीर को दूध, पूत का दाता भी कहा जाता है। यहां गुग्गा जहारपीर मंदिर में विद्यमान, मिट्टी के ढ़ेर से लाई गई मिट्टी को घर में रखने से नाग रक्षा की प्रगाढ़ लोक आस्था है। यहां प्रतिवर्ष गुग्गा नवमीं को दो दिवसीय मेले का आयोजन होता है। प्रत्येक गुरुवार को यहां श्रद्धालुओं का जन सैलाब उमड़ता है। मंदिर की समुचित पूजा व्यवस्था को बारह पुजारी बारी-बारी से संभालते हैं। इस मंदिर के बारे में अमरनाथ शर्मा घुमारवीं निवासी ने एक पुस्तक का प्रकाशन भी किया है।

-रवि कुमार सांख्यान, मैंहरी, बिलासपुर

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