बदरों ने खेतों से भगाए किसान

रुपणी पंचायत के ग्रामीणों ने खेतीबाड़ी से किया किनारा, हरे-भरे खेत बंजर होने के कगार पर

हनुमान जी की सेना के रूप में आम जनमानस के लिए पूजनीय रहे बंदर ऐसे खुराफाती हुए कि किसानों को दाने-दाने के लाले पड़ गए हैं। कल तक गुड़-चना डालकर अपने अराध्य देव को खुश करने में लगे किसान आज बंदरों के आतंक से इस कद्र परेशान हैं कि घाटे का सौदा साबित हो रही खेती से ही वे मुंह मोड़ने लगे हैं…

संदीप कुमार, राजनगर

चंबा विकास खंड की रूपणी पंचायत में बंदरों के आंतक ने किसानों की मुश्किलों को बढ़ाकर रख दिया है। बंदरों से परेशान किसान अब खेतीबाड़ी छोड़कर परिवार के भरन- पोषण को लेकर रोजगार के दूसरे विकल्प तलाश रहे हैं। रूपणी पंचायत के किसानों ने गत दो- तीन वर्षो से अब मक्की सहित अन्य नगदी फसलों की बिजाई से करीब- करीब किनारा कर लिया है। रूपणी के मनौता, रूपनी व घाडी गांव में किसी वक्त फसलों से लहलहाने वाले खेत अब वीरान दिख रहे हैं।

20 फीसदी घटा कृषि उत्पादन

रूपनी गांव के पवन कुमार का कहना है कि खेतों में हाड तोड़ मेहनत के बाद भी कुछ खास पल्ले नहीं पड़ रहा है। बंदरों के आंतक के चलते फसल की बिजाई में कम और रखवाली में दोगुनी मेहनत करनी पड़ रही है। पिछले पांच- छह वर्षो से बंदरों द्वारा फसलों पर बरपाए जा रहे कहर से घर का खाना- खर्च निकलना भी मुश्किल हो गया है। बंदरों के आंतक व मौसम की मार से फसल का उत्पादन बीस फीसदी तक सिमट गया है।

किसानों की मेहनत पर पानी

मनौता गांव के कमल सिंह का कहना है कि बंदरों के आंतक से अब खेतीबाड़ी आगामी दिनों में सपना बनकर ही रह जाएगी। हालात यह है कि खेतों में फसल की बिजाई के बाद जब मेहनत का फल मिलने का समय आता है तो बंदरों के झुंड खेतों में घुसकर ऐसा कहर बरपा जाते हैं कि सिर पर हाथ देने के अलावा कोई चारा नजर नहीं आता। अब खेतीबाड़ी से मेहनत का कोई खास फल नहीं मिल पाता है।

ढूंढने पड़ रहे और विकल्प

रूपणी पंचायत के उपप्रधान कैलाश चंद का कहना है कि पिछले कुछ अरसे से इलाके में बंदरों की संख्या में अप्रत्याशित इजाफा हुआ है। बंदरों के यह झुंड खाने की तलाश में रिहायशी क्षेत्र व खेतों में रोपी गई फसल को ठिकाना बनाकर लोगों के सिरदर्द बने हुए हैं। उन्होंने बताया कि पंचायत के जंगली क्षेत्र से सटे हिस्से के खेत में फसल की बिजाई न होने से बंजर होकर रह गए हैं।

बिजाई न होने से खेत बंजर

रत्न चंद का कहना है कि बंदरों के आंतक से उन्हें खेतीबाड़ी के पुश्तैनी धंधा छोड़ना पड़ा है। और परिवार के भरन- पोषण को लेकर दूसरा कामकाज आरंभ करना पड़ा है। उन्होंने कहा कि बंदरों ने नाक में दम करके रख दिया है। बंदरों के यह झुंड खाने की तलाश में रिहायशी क्षेत्र व खेतों में रोपी गई फसल को ठिकाना बनाकर लोगों के सिरदर्द बने हुए हैं।

विवाह प्रस्ताव की तलाश कर रहे हैं ? भारत मैट्रीमोनी में निःशुल्क रजिस्टर करें !