बेरोजगारी से बढ़ती अपराध की जड़ें

विजय शर्मा

लेखक, हमीरपुर से हैं

प्रदेश में अपहरण, बलात्कार और हत्या जैसे गंभीर अपराध रोज ही घटित हो रहे हैं। प्रदेश में मादक पदार्थों एवं दवाइयों की बड़ी खेप पकड़े जाने की खबरें विचलित करने लगी हैं कि आखिर इनका सेवन करने वाले प्रदेश के ही युवा होंगे, जो धीरे-धीरे इसकी चपेट में आते जा रहे हैं…

हिमाचल प्रदेश में बढ़ती बेरोजगारी और नशाखोरी से प्रदेश के युवक अपराध के दलदल में धंस रहे हैं। शानो शौकत भरी जिंदगी जीने की लालसा पाले युवक पढ़़-लिखकर नौकरी की तलाश में वर्षों भटकने के बाद जिंदगी की राह से भी भटकने लगे हैं। यही कारण है कि प्रदेश अपराध एवं अपराधियों की चपेट में है। संगीन अपराधों में बाहरी युवकों की भी संलिप्तता पाई गई है, लेकिन वे भी स्थानीय अपराधियों से मिलकर ही आपराधिक वारदातों को अंजाम दे रहे हैं। ताजा कोटखाई प्रकरण में भी स्थानीय युवकों के साथ नेपाल एवं उत्तर प्रदेश के युवकों का पकड़ा जाना इस तथ्य को साबित करने के लिए काफी है। प्रदेश में अपहरण, बलात्कार और हत्या जैसे गंभीर अपराध रोज ही घटित हो रहे हैं। प्रदेश के अलग-अलग जिलों में नशीले मादक पदार्थों एवं दवाइयों की बड़ी खेप पकड़े जाने की खबरें विचलित करने लगी हैं कि आखिर इनका सेवन करने वाले प्रदेश के ही युवा होंगे, जो धीरे-धीरे इसकी चपेट में आते जा रहे हैं। बेरोजगारी इसका सबसे बड़ा कारण है। प्रदेश सरकार के आंकड़ों पर ही गौर करें, तो हिमाचल में 8,28,048 बेरोजगार युवा हैं, लेकिन सरकार के अपने ही आंकड़े बेरोजगारी पर पर्दा डालते लगते हैं। प्रदेश सरकार के आंकड़ों के अनुसार प्रदेश में 2013-14 में पंजीकृत बेरोजगारों की संख्या 10,12,602 थी और 2013-14 और 2014-15 में प्रदेश सरकार ने क्रमशः करीब 585 और 575 लोगों को सरकारी नौकरी प्रदान की और प्रदेश में निजी कारखाने में करीब 7500 और 6781 लोगों ने रोजगार हासिल किया है, जबकि 2014-15 में 1,77,309 और 2015-16 में 1,99,892 युवक-युवतियां रोजगार कार्यालय में पंजीकृत हुईं। इसका सीधा सा अर्थ है कि सरकारी आंकड़ों में विरोधाभास है। इस वर्ष चुनावों से ऐन पहले प्रदेश सरकार ने शर्तों के साथ बेरोजगारी भत्ता देने का ऐलान किया है, तो प्रदेश के युवक-युवतियों में रोजगार कार्यालयों में पंजीकृत होने ही होड़ मची हुई है।

शायद अगले साल तक सही आंकड़े सामने आ पाएं, लेकिन यह भी सच्चाई है कि प्रदेश सरकार बेरोजगारी की समस्या से निपटने में विफल रही है और युवक-युवतियां भी रोजगार कार्यालयों में पंजीकरण कराने को महज औपचारिकता समझने लगे हैं। आज प्रदेश में लगभग 75,000 के आसपास पोस्ट-ग्रेजुएट, 1,25,000 ग्रेजुएट और 7,00,000 से ज्यादा मैट्रिक या उससे अधिक शिक्षित युवा बेरोजगारी का दंश झेल रहे हैं। सरकार ने चुनावी वर्ष में करीब 1000 करोड़ रुपए बेरोजगारों को भत्ते के रूप में देने का ऐलान किया है, लेकिन सरकार की इस योजना का लाभ सभी पात्र लोगों को मिलेगा, इसकी उम्मीद कम है, क्योंकि इसकी सारी जिम्मेदारी रोजगार कार्यालयों के कर्मचारियों पर छोड़ दी गई है और वही तय करेंगे कि किसे भत्ता मिलना चाहिए। प्रदेश मे आज लाखों ऐसे युवा हैं, जो डिग्री हाथ में लेकर घूमते हैं, लेकिन उन्हें रोजगार नहीं मिल पाता है। सरकारी नौकरियों में भाई-भतीजावाद आज भी हावी है। कुछ को रोजगार मिलता भी है, तो वह उनकी योग्यता व डिग्री के अनुरूप नहीं होता है। हजारों-लाखों की तादाद में हिमाचली युवा मजबूरी में घर छोड़कर अन्य राज्यों में नौकरी कर रहे हैं। करीब 75 लाख की आबादी वाले प्रदेश के यदि 10 लाख से ज्यादा युवा बेरोजगार होंगे, तो यह समस्या की गंभीरता को दर्शाने के लिए काफी है। बहुत से युवक अपने सपने को कुचल कर उच्च डिग्री होने के बावजूद अपनी योग्यता से कम पर नौकरी कर रहे हैं। आज हालत यह है कि पंचायत सहायक या कनिष्ठ लिपिक एवं चौकीदार की नौकरी के लिए स्नातक एवं परास्नातक युवक आवेदन कर रहे हैं।

युवकों में पढ़-लिखकर बेकार होने का भय ही उन्हें नशे की ओर धकेल रहा है और नशे की हालत में यह युवक कब अपराध की दलदल में धंस रहे हैं, स्वयं उन्हें भी इसका आभास नहीं हो रहा है। इसी कारण पढ़े-लिखे बेरोजगार युवक तत्कालिक लाभ के लिए आपराधिक कृत्यों को अपना पेशा बनाने लगे हैं। यही कारण है कि प्रदेश में दिन-प्रतिदिन आपराधिक घटनाओं में वृद्धि हो रही है। बेरोजगारी की समस्या एकाएक पैदा नहीं हुई है, लेकिन सरकार बेरोजगारी की समस्या को गंभीरता से कभी नहीं लेती और शायद यही कारण है कि वर्ष 2001-02 में हिमाचल प्रदेश में बेरोजगारों की जो संख्या 8,96,541 थी, वह अब भी निरंतर बढ़ ही रही है। इसके लिए जिम्मेदार हमारी सरकार है। प्रदेश सरकार अब तक एक परिणाम देने में सक्षम रोजगार नीति ही तैयार नहीं कर पाई है। प्रदेश में पर्यटन, जैविक खेती से लेकर वानिकी-बागबानी तक में रोजगार की असीमित संभावनाएं हैं। दुखद यह कि न तो सरकार इस दिशा में कुछ ज्यादा कर पाई है और न ही युवाओं ने इसमें रुचि दिखाई। बढ़ी बेरोजगारी का यह भी एक कारण माना जाएगा। एक तरफ जहां सरकार प्रदेश में औद्योगिक निवेश को बढ़ाने की बात करती है, वहीं आंकड़े इस बात की गवाही दे रहे हैं कि प्रदेश में जिस गति से औद्योगिक निवेश होना चाहिए, वह नहीं हो पा रहा है। हालांकि प्रदेश सरकार निवेशकों को आकर्षित करने के लिए कुछ शहरों में इन्वेस्टर मीट का आयोजन कर चुकी है, लेकिन वांछित परिणाम आने बाकी हैं। बेरोजगारी खत्म करने के लिए सरकार को अधिक से अधिक निवेश सुनिश्चित करने के साथ-साथ बेरोजगार युवाओं को आधुनिक तकनीक आधारित उद्योग-धंधे स्थापित करने के लिए प्रशिक्षण एवं यथोचित सरल एवं सुलभ कर्ज की व्यवस्था करनी चाहिए।

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