भारत का इतिहास

प्रारूप संविधान का पुनर्मुद्रित संस्करण

गतांक से आगे-

उन्होंने एक विशेष समिति की भी स्थापना की, जो विभिन्न सुझावों और टिप्पणियों पर तथा उनके संबंध में प्रारूप समिति की सिफारिशों पर विचार करती। इस विशेष समिति में अधिकतर संघ संविधान-समिति, प्रांतीय संविधान-समिति और संघ शक्ति- समिति के सदस्य मौजूद थे। विशेष  समिति द्वारा परीक्षण और सिफारिशों के फलस्वरूप प्रारूप समिति ने कुछ ऐसे संशोधन चुने जो उसे स्वीकार्य थे। इनके अतिरिक्त उसने कुछ ऐसे संशोधनों का भी सुझाव दिया जिनकी वह सिफारिश करने के लिए तैयार थी। इस तरह के संशोधनों के अध्ययन को सुगम बनाने के लिए प्रारूप समिति ने प्रारूप संविधान का एक पुनर्मुद्रित संस्करण प्रकाशित किया। यह संस्करण 26 अक्तूबर, 1948 को संविधान सभा के अध्यक्ष को दिया गया। बाद में इसकी प्रतियां संविधान सभा के सदस्यों को भी बांट दी गईं। जिस समय संविधान सभा ने प्रारूप संविधान पर विचार किया उस समय प्रारूप संविधान के इसी पुनर्मुद्रित संस्करण का उपयोग किया गया। इस  पुनर्मुद्रित  संस्करण  की विशेषता यह   थी कि प्रारूप समिति ने जिन संशोधनों की संस्तुति की थी, उनको मूल अनुच्छेदों या धाराओं के बिलकुल सामने दूसरे कॉलम में दिखाया गया था।

संविधान-सभा ने केंद्र प्रशासित के बारे में और केंद्र तथा प्रांतों के वित्तीय संबंधों के बारे में प्रतिवेदन देने के लिए दो समितियां नियुक्त की थीं। प्रारूप समिति ने इन समितियों के जिन प्रस्तावों को स्वीकार नहीं किया उन्हें प्रारूप संविधान के पुनर्मुद्रित संस्करण में एक परिशिष्ठ में वैकल्पिक उपबंधों के रूप में दिखा दिया गया था। डां अंबेडकर ने 4 नवंबर, 1948 को प्रारूप संविधान सभा के विचार के लिए प्रस्तुत किया। इस अवसर पर डा. अंबेडकर ने प्रारूप संविधान की सामान्य आलोचनाओं का, विशेष कर इस  आलोचना का कि संविधान मौलिक नहीं था, उत्तर दिया।

वाद-विवाद और स्वीकृति

15 नवंबर, 1948 को प्रारूप संविधान पर धारावार विचार आरंभ हुआ। ब्रिटिश हाउस ऑफ कामन्स में विधेयकों के संबंध में जो प्रक्रिया अपनाई जाती है, उसका अनुसरण करते हुए  निश्चय किया गया कि प्रस्तावना पर प्रारूप संविधान की सभी धाराओं पर विचार करने के बाद विचार किया जाए। संविधान-सभा के सातवें आठवें नवें और दसवें अधिवेशनों में, 17 अक्तूबर, 1947 तक प्रारूप संविधान की विभिन्न धाराओं पर भी विस्तृत विचार विनिमय हुआ।

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