रिवालसर की समस्या
डा. रितेश के मुताबिक रिवालसर वैटलैंड में धार्मिक क्रियाओं को नियंत्रित किए जाने की जरूरत है। वहां मछलियों पर भी नियंत्रण लाने की जरूरत होगी। झील में पानी की गुणवत्ता व ड्रेनेज के साथ-साथ अन्य कारणों पर भी गौर करना आवश्यक होगा।
ये आएंगे वैटलैंड की श्रेणी में
भृगु लेक, सरयोसर,नाको पराशर मणिमहेश चंद्रनौण आदि।
वैटलैंड के संरक्षण के लिए अब एक नोडल विभाग चयनित होगा। सभी संबंधित महकमें समन्वय से संरक्षण के कार्य में जुटें, यह प्रयास होगा।सेमिनार का मकसद भी यही है कि वैटलैंड लोगों, वाइल्ड लाइफ के साथ-साथ पर्यटन के लिए महत्त्वपूर्ण बनें
तरुण कपूर
अतिरिक्त मुख्य सचिव (वन)
ग्लेशियर पिघलने से निचले क्षेत्रों में सिकुड़ रहे वैटलैंड्स
शिमला— हिमाचल के पर्वतीय इलाकों में वैटलैंड्स की संख्या बढ़ रही है, जबकि प्रदेश के निचले हिस्सों में वैटलैंड्स लगातार सिकुड़ रहे हैं। सर्वेक्षण बताते हैं कि ग्लेशियर्स की पिघलने की गति बढ़ने की वजह से ये बदलाव देखने को मिल रहे हैं। इनकी वास्तविक संख्या का खुलासा इसरो द्वारा की जाने वाली मैपिंग से होगा। इसी वर्ष यह कार्य अक्तूबर तक शुरू किया जा सकता है। विशेषज्ञ सूत्रों के मुताबिक इन नदियों पर आधारित ऐसे वैटलैंड्स की संख्या 340 से ज्यादा हो सकती है। देश में सात लाख 70 हजार वैटलैंड्स मौजूद होने की सूचनाएं हैं, जबकि अधिसूचित वैटलैंड्स की संख्या 170 के लगभग है। पूरे देश में 25 रामसर साइट्स घोषित हैं।
हिमाचल में नहीं है प्राधिकरण
हिमाचल में मुख्य सचिव की अध्यक्षता में स्टीयरिंग कमेटी का गठन तो है, मगर राज्य वैटलैंड प्राधिकरण गठित नहीं हो सका है। अब इसे मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में गठित करने की तैयारी चल रही है।
ये है विशेषज्ञों की राय
बैठक में मौजूद विशेषज्ञों ने राय दी कि वैटलैंड्स का संरक्षण प्राकृतिक तौर पर ही होना चाहिए। मसलन वहां फिशरीज भी हो, बर्ड्स एक्टिविटी भी हो, लोगों के उपयोग में भी आए, नियंत्रित पर्यटन गतिविधियां भी जारी रहे और इलाके से छेड़छाड़ न हो।
ऐसे पड़ा रामसर नाम
रामसर इरान में एक इलाके का नाम है, जहां वर्ष 1980 में एक बड़ा आयोजन किया गया था, जिसमें वैटलैंड्स को लेकर बड़ा मंथन हुआ था। उसी के नाम पर संरक्षित व विकसित वैटलैंड्स को रामसर साइट्स का नाम दिया गया। हिमाचल में इनकी संख्या तीन है, जिनमें पौंग, चंद्रताल व रेणुका उल्लेखनीय है।