कसौटी पर शिक्षक सम्मान

किशन बुशैहरी

लेखक, नेरचौक, मंडी से हैं

शिक्षक सम्मान को निर्विवाद बनाने एवं योग्यता की कसौटी परखने के लिए सेवानिवृत्त शिक्षाविदों व प्रशासनिक अधिकारियों की उच्च स्तरीय कमेटी का गठन करना चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि निष्पक्ष निरीक्षणकर्ता ही पारदर्शी ढंग से इन पुरस्कारों के चयन हेतु सर्वश्रेष्ठ एवं योग्य शिक्षकों का चुनाव करने में सक्षम हो सकता है…

जब भी हम शिक्षक को अपने अतीत के साथ जोड़ते हैं, तो उसमें संस्कार, शालीनता, कर्त्तव्यनिष्ठा एवं ईमानदारी जैसी अति दुर्लभ एवं उच्च मानवीय मूल्यों की सुरीली ध्वनि सुनाई देती है। इसके विपरीत अगर हम वर्तमान परिस्थितियों में शिक्षक के व्यक्तित्व का अवलोकन करें, तो उसमें बहुत सी विसंगतियां उभर कर सामने आती हैं। जिस प्रकार समाज अपनी गति से निरंतर अग्रसर है, उसी प्रकार शिक्षक का व्यक्तित्व भी गतिशील होता जा रहा है व समाज के सर्वव्यापी सामाजिक मूल्यों के अवमूल्यन का शिकार शिक्षक भी हो रहा है। शिक्षक की संवेदनशीलता व संवेदनहीनता दोनों ही विद्यार्थी के जीवन मूल्यों पर व्यापक प्रभाव डालती है। एक संवेदनशील शिक्षक अपने साधक को ऐसे मार्ग पर अग्रसर कर देता है कि विद्यार्थी किसी भी मंजिल को हासिल कर सकता है। इसके विपरीत एक शिक्षक की संवेदनहीनता साधक को अंधकार में धकेल देती है, जिस कारण वह जीवन भर भटकता रहता है। यही कारण आदिकाल से ही शिक्षक समस्त समाज के पथ प्रदर्शक की महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करता रहा है। शिक्षक की इस गौरवपूर्ण प्रतिष्ठा के फलस्वरूप ही महान शिक्षाविद, दार्शनिक व भारतवर्ष के द्वितीय राष्ट्रपति सर्वपल्ली डा. राधाकृष्णन की जन्म स्मृति में भारतवर्ष में शिक्षक दिवस के रूप में उनके जीवनकाल से ही 1958-59 से प्रतिवर्ष पांच सितंबर को मनाया जाता है। उनके जीवन मूल्यों व उसके द्वारा देश की शिक्षा के उत्थान के लिए किए गए अविस्मरणीय योगदान को प्रेरणा स्रोत मानकर शिक्षा के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने वाले शिक्षकों को राष्ट्रीय स्तर व राज्य सरकारें इस दिवस के उपलक्ष्य में सम्मानित करती हैं। इन पुरस्कारों के प्रायोजन की मूल धारणा व मुख्य उद्देश्य सरकारी क्षेत्र में कार्यरत विभिन्न वर्गों के शिक्षकों को उनके द्वारा अध्यापन कार्य के साथ-साथ अन्य सामाजिक गतिविधियों में किए गए उत्कृष्ट कार्यों के निष्पादन हेतु पुरस्कृत किया जाना है। शिक्षकों के प्रति समाज में सम्मान भाव एवं प्रतिष्ठा को स्थापित करना इस एक अहम उद्देश्य रहा है। इसके अतिरिक्त शिक्षण कार्यों के लिए समर्पित सृजनशील, प्रभावोत्पादक, कर्त्तव्यनिष्ठ शिक्षकों को प्रोत्साहित करना भी इसका लक्ष्य है, परंतु इन प्रतिष्ठित पुरस्कारों की चयन प्रक्रिया भी अन्य पुरस्कारों की तरह संदेहास्पद रही है। ऐसा इसलिए क्योंकि राजनीतिक एवं प्रशासनिक संरक्षण के बगैर प्रदेश में कर्मठ एवं योग्य शिक्षक इस प्रकार के सम्मानों से सदैव

वंचित रहते हैं। माननीय मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह द्वारा भी स्वयं विगत वर्ष शिक्षक दिवस के अवसर पर इन पुरस्कारों की चयन प्रक्रिया पर प्रश्नचिन्ह व अपनी नाराजगी प्रकट की थी, जिसके परिणामस्वरूप शिक्षा विभाग द्वारा इसमें कुछ बदलाव किए हैं। इसकी परिणती यह रही कि जनजातीय क्षेत्रों में सेवारत शिक्षकों को भी अलग से नामांकन करने को अधिकृत किया गया है। प्रदेश सरकार के दिशा-निर्देशानुसार राज्य शिक्षक पुरस्कार योजना के लिए प्रदेश शिक्षा विभाग के पत्र संख्या ईडीएन-सी-सी(17)-3/2017 दिनांक 23 जून, 2017 के द्वारा राज्य स्तरीय शिक्षक पुरस्कार योजना को संसोधित किया गया है। इसमें राज्य स्तरीय शिक्षक पुरस्कार के लिए शिक्षकों का नामांकन स्कूल, खंड अथवा जिला शिक्षा अधिकारी कर सकते हैं या शिक्षक स्वयं ही स्वयं को नामांकन के लिए प्रस्तुत कर सकता है या नामांकित कर सकता है। विडंबना यह है कि शायद ही किसी स्कूल, खंड अथवा जिला शिक्षा अधिकारी ने किसी शिक्षक को आज तक इस हेतु नामांकित किया हो, जबकि पुरस्कार का इच्छित शिक्षक स्वयं ही अपने को इसे हेतु नामांकित करता है। आत्महित में अपना स्वार्थ समक्ष रखकर स्वयं को शिक्षक द्वारा अपने को प्रस्तुत करना ही इस प्रतिष्ठित पुरस्कार की चयन प्रक्रिया में सबसे बड़ी विसंगति है, जिससे अधिकांश समय शिक्षक पुरस्कार प्राप्त करने का प्रार्थी शिक्षक आवश्यक दस्तावेजों को एकत्रित करने के लिए अवांछित प्रयास में सक्रिय रहता है। यद्यपि शिक्षा निदेशक प्रारंभिक के दिशा निर्देशानुसार, इन शिक्षकों द्वारा संलग्न दस्तावेजों की सत्यता की प्रामाणिकता को जांचने हेतु अपने स्तर पर एक उच्च स्तरीय कमेटी का गठन भी किया जाता है, परंतु समस्त चयन प्रक्रिया मात्र रस्म अदायगी बन कर रह गई है। आत्म अनुशंसा के कारण कितना अतार्किक व अव्यवस्थित ढंग से इन पुरस्कारों का चयन किया जाता है, जिस कारण इन पुरस्कारों की गरिमा निरंतर कम होती जा रही है। संभव है कि किसी शिक्षक को शिक्षा के प्रति उसके उल्लेखनीय योगदान और असाधारण उपलब्धि के लिए यह सम्मान दिया जाता है, परंतु इसकी पात्रता एवं आवेदन प्रक्रिया ऐसे निर्धारित की गई है कि कोई भी शिक्षक अपने व्यक्तिगत प्रयासों से इसे प्राप्त करने के लिए आवेदन कर सकता है। इस प्रतिष्ठित पुरस्कार को निर्विवाद बनाने एवं योग्यता की कसौटी परखने के लिए सेवानिवृत्त शिक्षाविदों व प्रशासनिक अधिकारियों की उच्च स्तरीय कमेटी का गठन करना चाहिए, क्योंकि निष्पक्ष निरीक्षणकर्ता ही पारदर्शी ढंग से इन पुरस्कारों के चयन हेतु सर्वश्रेष्ठ एवं योग्य शिक्षकों का चुनाव करने में सक्षम हो सकता है।